Tuesday 28 January 2014

भारतीय वैज्ञानिकों ने कचरे से बनाया तरल ईंधन

Image Loadingभारतीय वैज्ञानिकों ने एक प्रक्रिया विकसित करने में सफलता पाई है, जिसके माध्यम से कुछ निश्चित प्लास्टिक के कचरे को तुलनात्मक रूप से कम तापामन पर तरल ईंधन में बदला जा सकता है।
पत्रिका एनवायरमेंट एंड वेस्ट मैनेजमेंट में प्रकाशित होने वाली शोध के मुताबिक, इस खोज से बेकार हो चुके प्लास्टिक के थलों और दूसरी चीजों का पुन: उपयोग कर ईंधन का निर्माण किया जा सकता है, जिसकी मांग वैश्विक स्तर पर दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। ओडिशा के सेंचुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नालॉजी एंड मैनेजमेंट के रसायनशास्त्री अच्युत कुमार पांडा एवं नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नालॉजी उड़ीसा के रसायन इंजीनियर रघुबंश कुमार सिंह ने मिलकर आर्थिक रूप से व्यवहारिक तकनीक विकसित की है, जिसकी सहायता से आम बहुलक और कम घनत्व वाले पॉलिथीन को तरल ईंधन में बदला जा सकेगा। इस प्रक्रिया में प्लास्टिक के कचरे को 400 से 500 डिग्री सेल्सियस ताप पर केओलीन केटालिस्ट (एल्युमिनियम एवं सिलिकॉन मिली मिट्टी) के साथ गर्म किया जाता है। वैसे तो दुनिया भर में उत्पादों के पुनर्चक्रण के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी प्लास्टिक के कचरे जगह-जगह सड़कों पर, मिट्टी में या समुद्र में बिखरे पड़े नजर आते हैं। यदि इस नई खोज का बड़े स्तर पर क्रियान्वयन किया जाए, तो प्लास्टिक के प्रदूषण से तो मुक्ति मिलेगी ही और दुनियाभर में ईंधन के रूप में पेट्रोरसायन की बढ़ती मांग की तरफ भी महत्वपूर्ण समाधान मिल सकता है।

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