Sunday 19 January 2014

काम न आये तारे, चल निकला खोटा सिक्का

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अपने एक बेहद करीबी फिल्म समीक्षक हैं, जिनका फिल्म वितरकों के यहां अच्छा-खासा उठना-बैठना है। वितरक बिरादरी के बारे में उनसे कई बार अच्छी गुफ्तगू होती रहती है। पिछले दिनों एक चर् चा के दौरान उन्होंने एक अंदर की बात बताई। उन्होंने कहा, ‘फिल्म वितरक कई बार ये दुआ करते दिखते हैं कि फलां फिल्म को फिल्म समीक्षकों से बढिया रेटिंग न मिले। ये आजमाया हुआ फंडा है कि अगर किसी फिल्म को बढिया रेटिंग मिलती है तो वह औसत बिजनेस ही कर पाती है, जबकि कम रेटिंग वाली फिल्म ठीक-ठाक खा-कमा जाती है।’
एक हफ्ते बाद जब फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘यारियां’ की कलेक्शन आयी तो मुझे उस मित्र की बात याद आयी। ‘डेढ़ इश्किया’ को फिल्म समीक्षकों से 3 से 5 स्टार्स के बीच रेटिंग मिली, लेकिन इसका वीकएंड कलेक्शन आया करीब 12 करोड़ रुपये, जो उम्मीद के मुताबिक काफी कम था। तो दूसरी ओर ‘यारियां’ जैसी फिल्म, जिसे समीक्षकों ने आधे और दो के बीच स्टार्स दिये, उसका कलेक्शन आया करीब 17 करोड़ रुपये। ‘यारियां’ ने एक सप्ताह में 25 करोड़ का आंकड़ा आसानी से पार कर लिया, जबकि ‘डेढ़ इश्किया’ 16 करोड़ से थोड़ा ही आगे बढ़ पायी। एक सप्ताह के बाद उस मित्र की बात और सच्ची हो गयी। ‘डेढ़ इश्किया’ के साथ क्या हुआ, इसके मंथन में विशाल भारद्वाज की पूरी टीम जुटी हुई है और ‘यारियां’ के मेकर्स के पास जश्न मनाने की ढेरों वजह हैं।

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