Friday 24 January 2014

मकर संक्रांति: हरिमंदिर साहिब, अमृतसर का स्थापना दिवस

raofamilysirsa
माघ महीने की प्रतिपदा जहां मकर संक्रांति के रूप में सारे भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है वहीं इस तिथि का सिख इतिहास में भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस पवित्र दिन के साथ दो उल्लेखनीय प्रसंग जुड़े हैं। एक तो यह श्री हरिमंदिर साहिब, अमृतसर का स्थापना दिवस है और दूसरे इस दिन पावन नगर मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला होता है।
श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना तीसरे पातशाह श्री गुरु अमरदास जी की इच्छा एवं आज्ञा के अनुसार चौथे पातशाह श्री गुरु रामदास जी ने सन 1573 ई. में इस सरोवर को पक्का करवाया और इसे 'राम सर', 'रामदास सर' या 'अमृतसर' कह कर पुकारा।
पंचम पातशाह की अभिलाषा थी कि अमृत सरोवर के मध्य में अकालपुरख के निवास सचखंड के प्रतिरूप के रूप में एक मंदिर की स्थापना की जाए। सिख परंपरा के अनुसार एक माघ सम्वत 1645 वि. के मुताबिक सन 1589 ई. को निर्माण कार्य आरंभ करवाया गया और पंचम पातशाह के परम मित्र साई मीआं मीर ने इसकी नींव रखी। निर्माण कार्य संवत 1661 वि अर्थात 1604 ई में संपूर्ण हुआ। पंचम पातशाह ने इसे 'हरिमंदिर' अर्थात हरि का मंदिर कहा। एक सितंबर 1604 ई. को यहां गुरु ग्रंथ साहिब का प्रथम प्रकाश किया गया। गुरु जी ने मानवता के इस महान आध्यात्मिक केंद्र की स्तुति में फरमाया।
पोथी परमेसर का थानु।। साध संगि गावहि गुण गोबिंद पूरन ब्रहम गिआनु।। अर्थात यह पोथी में दर्ज गुरबाणी के माध्यम से परमेश्वर को पाने का स्थान है। यहां साध-संगत गोबिंद के गुण गाती है और पूर्ण ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करती है।
मुक्तसर का माघी मेला-सिख इतिहास और परंपरा में मुक्तसर का स्थान बहुत ही विशेष है। सन 1704 ई तक यहां एक बहुत बड़ा कच्चा तालाब था। इसे 'खिदराणो की ढाब' कहा जाता था। चमकौर के युद्ध के बाद अनेक स्थानों से होते हुए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सन 1705 ई में यहां पहुंचे थे। सरहिंद के सूबेदार वजीर खान की फौज गुरु जी का पीछा कर रही थी। ऐसे में वे चालीस सिख जो आनंदपुर साहिब में गुरु जी को बेदावा (त्यागपत्र) देकर छोड़ आए थे, माई भागो के नेतृत्व में खिदराणो की ढाब में आ डटे। मुगल लश्कर को घमासान युद्ध के बाद वापस लौटना पड़ा। चालीस के चालीस सिख शहीद हो गए। उनमें से एक भाई महां सिंह ने शहीद होते समय गुरु जी से बेदावा फाड़ देने की प्रार्थना की। गुरु दशमेश पिता ने सभी सिखों का अंतिम संस्कार स्वयं किया और उन्हें 'मुक्ते' की उपाधि बख्शी। इसलिए इन्हें चालीस मुक्ते कहा जाता है। मुक्तों और ढाब के कारण इस सरोवर का नाम मुक्तसर पड़ा।
चालीस मुक्तों की याद में यहां हर वर्ष माघी को बहुत बड़ा मेला लगता है। माघी वाले दिन श्रद्धालु पवित्र मुक्तसर सरोवर में स्नान करते हैं। इस प्रकार माघी के दिन का अमृतसर व मुक्तसर दो पवित्र सरोवरों एवं नगरों से गहरा संबंध है।

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