Saturday 18 January 2014

हल्के में न लें जुकाम

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nose problem in winter season
इस मौसम में जुकाम की समस्या काफी बढ़ जाती है। दो-चार दिन लापरवाही बरतते ही यह समस्या गंभीर हो जाती है और आप कई बार बुखार से भी घिर जाते हैं। तो क्यों न कुछ बातों का ध्यान रखें और जुका म से दूर रहें।
ठण्ड के मौसम के साथ-साथ सर्दी-जुकाम के रोगियों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। हालांकि सर्दी-जुकाम किसी भी मौसम में हो सकता है, परन्तु ठण्ड के मौसम में सर्दी- जुकाम के मामले 50 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं। क्या है जुकाम
जुकाम एक तरह की एलर्जी है, जिसमें हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम में पस सेल्स और पानी का मिश्रण बन जाता है और यही नाक और गले के माध्यम से बाहर आने लगता है। जुकाम अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह इस बात की तरफ संकेत देता है कि रेस्पिरेटरी सिस्टम में एलर्जी या संक्रमण हो चुका है। इसके लक्षण को लम्बे समय तक नजरअंदाज किया जाये तो वह निमोनिया और साइनोसाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों का रूप ले सकती है। क्या है इसके कारण
इसके मुख्यत: दो कारण होते हैं। हवा में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस जब सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं तो एलर्जी हो जाती है। इस कारण नाक से पानी वाले या रेशेदार द्रव्य बाहर आने लगते हैं। ये बैक्टीरिया सांस लेने के रेस्पिरेटरी सिस्टम में भी संक्रमण कर देते हैं। हमारे गले में कई तरीके के बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, कुछ अच्छे और कुछ बुरे। कभी-कभी सर्दी-गर्मी बढ़ने, एकदम ठंडा-गर्म खाने, ठंडे से गर्म व गर्म से ठंडे माहौल में जाने से बुरे बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। ये बैक्टीरिया ही गले को संक्रमित कर देते हैं और जुकाम की वजह बनते हैं। क्या हैं लक्षण
नाक से सफेद, पीला या हरा द्रव निकलना।
छींकें आना।
गले मे खराश।
कान मे दर्द होना।
आंखों से पानी आना।
शरीर मे दर्द होना।
थकावट महसूस होना। आप रखें अपना विशेष ध्यान
जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उन्हें अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए। छोटे बच्चे, बुजुर्ग आदि को अपना विशेष ख्याल रखना चाहिए। क्या है इसका इलाज
मामूली जुकाम के लिए आमतौर पर कोई खास इलाज की जरूरत नहीं होती। जुकाम ठीक होने में थोड़ा समय लगता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के अनुकूल यह एक हफ्ते के भीतर खुद ही ठीक हो जाता है। राहत न मिलने पर जुकाम के लक्षणों के आधार पर इलाज दिया जाता है। ऐसा न करें
जुकाम में मरीज को खुद से कभी भी एंटीबायोटिक दवाएं नहीं लेनी चाहिए। कभी-कभी शुरू में वायरल संक्रमण बाद बैक्टीरियल संक्रमण का रूप ले सकता है। इसे सेकेंडरी बैक्टीरियल संक्रमण कहा जाता है। इसमें एंटीबायोटिक्स दवाएं सिर्फ डॉक्टर की सलाह से ही लेनी चाहिए। डॉक्टरी परामर्श कब है जरूरी
अगर नाक से निकलने वाला पीला या हरा द्रव्य गाढ़ा हो तो समझें कि संक्रमण ज्यादा हो गया है।
एक हफ्ते से ज्यादा पुराना जुकाम हो जाए और बुखार भी हो। इन बातों का ध्यान रखें
हर वर्ष अगस्त से सितम्बर के बीच फ्लू वैक्सीन अवश्य लगवाएं।
उचित गर्म कपडे़ पहनें। कोहरे में बाहर जाने से परहेज करें।
कोई खांस रहा हो तो टिश्यू पेपर मुंह पर रखें। खुद भी अगर खांस रहे हैं या छींक रहे हैं तो टिश्यू पेपर ले लें।
भीड़ वाली जगह में कम जाएं। ऐसी जगहों पर एयरकंडिशनर लगे होते हैं। जब लोग छींकते या खांसते हैं तो हवा में वायरस फैल जाते हैं। अगर आपकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है तो आप इसकी चपेट में आ सकते हैं।
खाना मौसम के हिसाब से लें। अगर बाहर खाएं तो सफाई का पूरा ध्यान रखें।
ज्यादा से ज्यादा पानी और जिंक और विटामिन सी वाली चीजें लें।
जहां तक संभव हो सके, हल्के गरम व तरल पदार्थ जैसे सूप, दलिया, खिचड़ी और रसेदार सब्जियां भरपूर मात्रा में लें।
तुलसी, अदरक, शहद, काली मिर्च, लौंग, मुनक्का का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
(मूलचंद मेडिसिटी के कंसलटेंट (इंटरनल मेडिसिन) डॉ. श्रीकांत शर्मा से बातचीत पर आधारित)

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