Friday 17 January 2014

जावेद अख्तर के गीतों से आज भी मंत्रमुग्ध है जगत

Image Loadingलगभग तीन दशक से अपने गीतों से संगीत जगत को सराबोर करने वाले महान शायर और गीतकार जावेद अख्तर की रूमानी नज्में आज भी लोगो को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। 
        
वर्ष 1981 में निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा अपनी नई फिल्म 'सिलसिला' के लिए गीतकार की तलाश कर रहे थे। उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में जावेद अख्तर बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बना चुके थे। यश चोपड़ा ने जावेद अख्तर से फिल्म 'सिलसिला' के गीत लिखने की पेशकश की। फिल्म 'सिलसिला' में जावेद अख्तर के गीत 'देखा एक ख्वाब तो सिलसिले हुए' और 'ये कहां आ गए हम' श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए।
        
फिल्म 'सिलसिला' में अपने गीत की सफलता से उत्साहित जावेद अख्तर ने गीतकार के रूप में भी काम करना शुरू किया। इसके बाद जावेद अख्तर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखकर लोगों के दिलों पर राज किया।
    
17 जनवरी 1945 को शायर-गीतकार जां निसार अख्तर के घर जब एक लड़के ने जन्म लिया तो उसका नाम रखा गया 'जादू'। यह नाम जां निसार अख्तर के ही एक शेर की एक पंक्ति, 'लंबा लंबा किसी जादू का फसाना होगा' से लिया गया है। बाद मे जां निसार के यही पुत्र जादू (जावेद अख्तर) के नाम से फिल्म इंडस्ट्री में विख्यात हुए।
 
बचपन से ही शायरी से जावेद अख्तर का गहरा रिश्ता था। उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थीं जिन्हें वह बड़े चाव से सुना करते थे। जावेद अख्तर ने जिंदगी के उतार, चढ़ाव को बहुत करीब से देखा था इसलिए उनकी शायरी मे जिंदगी के फसाने को बड़ी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।
      
जावेद अख्तर के गीतों की यह खूबी रही है कि वह अपनी बात बड़ी आसानी से दूसरों को समझाते हैं। जावेद अख्तर के जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया। जावेद अख्तर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से पूरी की। कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद जावेद अख्तर अलीगढ़ आ गए जहां वह अपनी ख़ाला के साथ रहने लगे।
        
जावेद अख्तर ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा भोपाल के सेफिया कॉलेज से पूरी की लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन वहां नहीं लगा और वह अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वर्ष 1964 मे मुंबई आ गए।
      
मुंबई पहुंचने पर जावेद अख्तर को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुंबई मे कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपए के वेतन पर फिल्मों मे डायलॉग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए डॉयलाग लिखे लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
     
मुंबई में जावेद अख्तर की मुलाकात सलीम खान से हुई जो फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इसके बाद जावेद अख्तर और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म 'अंदाज' की कामयाबी के बाद जावेद अख्तर कुछ हद तक बतौर डायलॉग रायटर फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए।
        
फिल्म 'अंदाज' की सफलता के बाद जावेद अख्तर और सलीम खान को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। इन फिल्मों में 'हाथी मेरे साथी', 'सीता और गीता', 'जंजीर', 'यादों की बारात' जैसी फिल्में शामिल हैं। इस दौरान उनकी मुलाकात हनी ईरानी से हुई और जल्द हीं जावेद अख्तर ने हनी ईरानी से निकाह कर लिया। अस्सी के दशक में जावेद अख्तर ने हनी इरानी से तलाक लेने के बाद शबाना आजमी से शादी कर ली।
         
वर्ष 1987 में प्रदर्शित फिल्म 'मिस्टर इंडिया' के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गयी। इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा। जावेद अख्तर को मिले सम्मानों को देखा जाये तो उन्हे उनके गीतों के लिए आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 
       
वर्ष 1999 मे जावेद अख्तर को पदमश्री दिया गया। वर्ष 2007 में जावेद अख्तर को पदम भूषण सम्मान से भी नवाजा गया। जावेद अख्तर को उनके गीत के लिए 'साज़', 'बॉर्डर', 'गॉडमदर', 'रिफ्यूजी' और 'लगान' के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। जावेद अख्तर आज भी गीतकार के तौर पर फिल्म जगत को सुशोभित कर रहे हैं।

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