Tuesday 23 July 2013

कामचोर टीपू

टीपू बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था। टीपू ने दे खा कि सबको उसकी आदत पड़ गयी है, तो उसने पैसों की जगह हर एक से केला लेना शु रू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अब काम खत्म करने के बाद टीपू को खाने की तलाश में इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता था।
पंकज वन में टीपू नाम का एक बन्दर था। वह बाकी जानवरों में सबसे चालाक था। एक दिन रीतू हाथी और बिन्दु भालू एक साथ बैठे थे। सभी परेशान थे। उनकी परेशानी यह थी कि जब दूर-दराज से उनके नाम की कोई चिट्ठी आती थी तो उसे लाने में लंबू जिराफ काफी समय लगाता था। यही नहीं, बिना पैसे दिए कोई भी चिट्ठी उन्हें नहीं मिलती थी। एक दिन सबने बैठकर इस मामले में सलाह की। यह फैसला किया गया कि पंकज वन का डाकिया टीपू बन्दर को बनाया जाए, क्योंकि वह चुस्त और चालाक है। सबने यह प्रस्ताव शेरखान के सामने रखा और उसी दिन से टीपू बन्दर को पंकज वन का डाकिया बना दिया गया। टीपू बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था। टीपू ने देखा कि उसे सभी चाहते हैं। समय बीतने के साथ उसने पैसों की जगह हर एक से केला लेना शुरू कर दिया। इसका एक फायदा यह होता था कि काम खत्म करने के बाद टीपू को खाने की तलाश में इधर-उधर
नहीं भटकना पड़ता था। अब तो धीरे-धीरे टीपू बन्दर कामचोर होता गया और उसकी कामचोरी बढ़ती ही चली गई। उसने कोई न कोई बहाना बनाकर सभी से पैसे लेना भी शुरू कर दिया था। जब सभी ने देखा कि टीपू कामचोर हो गया है और सभी से पैसे लेने लगा है तो सबने मिलकर पंकज वन में एक बैठक आयोजित की। बैठक में सभी जानवरों ने बताया कि कभी बीमारी का बहना बनाकर तो कभी कहीं जाने के नाम पर टीपू उनसे पैसे ऐंठ लेता है। फिर क्या था, सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय पारित किया कि अब टीपू बन्दर को हटा दिया जाए और बिन्दु भालू को डाकिया बना दिया जाए। यह बात हो ही रही थी कि रीतू हाथी बीच में कूद पड़ा और बोला, ‘अब इस जंगल में कोई डाकिया नहीं बनेगा’। सभी जानवरों ने उससे कहा, ‘नया डाकिया नहीं बनेगा तो हम सभी को चिट्ठी कैसे मिलेंगी।’ रीतू ने कहा, ‘आप सभी शहर में रहने वाले अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, भाई-बहनों और माता-पिता को यह संदेश भिजवा दो कि वे अब चिट्ठी न लिखें। आप सभी देखेंगे कि ऐसा होने से टीपू बन्दर घर में बैठा रहेगा।’ बिंदु भालू ने कहा, ‘भैया रीतू आपका आइडिया बहुत अच्छा है, पर शहर में किसी को कुछ हो गया तो खबर कैसे पता लगेगी।’ सभी जानवर एक साथ बोले, ‘हां-हां बताओ कैसे पता चलेगा?’ रीतू हाथी ने कहा, ‘सब शांत होकर मेरी बात सुनो। हम सब मिलकर एक साथ पंकज वन में एक बूथ खोलेंगे। लोग आराम से फोन पर बात कर लेंगे। सभी जानवर अपने-अपने घरों में टेलीफोन लगा लें, जिससे उन्हें कभी डाकिये के भरोसे रहना नहीं पड़ेगा।’ यह सुनकर सभी जानवर बहुत खुश हो गए। जब ये सब बातें टीपू बन्दर ने सुनीं तो उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। वह दौड़ता हुआ बैठक में पहुंचा और वहां जाकर सभी जानवरों से माफी मांगी। सभी ने उसे माफ किया और आगे से आलस न करने की बात कही। अब टीपू पहले की तरह चुस्त हो गया था। कभी भी किसी से रिश्वत नहीं मांगता था। अगर किसी जानवर को पढ़ना न आता हो तो वह उसे चिट्ठी पढ़कर भी सुना देता था।

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