Tuesday 23 July 2013

सावधान दिल्ली...आप पर भी है भीषण बाढ़ का खतरा

Image Loadingउत्तराखंड की तरह ही किसी भी दिन दिल्ली को भी बाढ़ की भयानक त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है। संसद की आपदा प्रबंधन संबंधी समिति ने ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए करीब साल भर पहले कई सिफारिशें की थीं, लेकिन ये सिफारिशें विभिन्न मंत्रालयों के बीच में फंस कर रह गयी हैं और उन पर अभी तक कोई अमल नहीं हो पाया है।
   
संसदीय आपदा प्रबंधन फोरम की पिछले साल अगस्त में हुई बैठक में भाग लेने वाले अधिकतर सदस्यों ने यह राय जाहिर की थी कि मौसम में किसी भी प्रकार के विनाशकारी बदलाव की हालत में शहरी इलाके बाढ़ और जलजनित तथा संक्रामक बीमारियों की दृष्टि से बेहद अधिक संवेदनशील हैं।
   
फोरम की इस बैठक में सदस्यों ने इस बात को विशेष तौर पर रेखांकित किया था कि भारत में मुंबई सहित कई प्रमुख शहर बाढ़ के चलते जानमाल के भारी नुकसान, परिवहन और विद्युत आपूर्ति में बाधा तथा महामारियों के फैलने जैसी घटनाओं को भुगत चुके हैं।
   
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के उपाध्यक्ष एम शशिधर रेड्डी ने इस बैठक में चेतावनी दी थी कि गैर नियोजित तरीके से बढ़ता शहरीकरण और उसके परिणामस्वरूप पैदा हुए भीड़भाड़ तथा भूमि की बढ़ती मांग प्रमुख समस्याएं हैं। उन्होंने फोरम की बैठक में कहा था कि 2005 में मुंबई में आयी भयानक बाढ़ के बाद एनडीएमए ने पहली बार शहरी इलाकों की बाढ़ को कस्बाई या ग्रामीण इलाकों में आने वाली बाढ़ से अलग कर शहरी इलाकों की बाढ़ से निपटने के लिए अलग से दिशा निर्देश तय किए थे।
   
सूत्रों ने बताया कि इस फोरम की सिफारिशों पर किसी मंत्रालय से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। हालांकि बैठक को हुए एक साल बीतने को आया है।
   
रेड्डी का यह भी कहना रहा है कि केंद्रीय जल आयोग शहरी बाढ़ से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है और इसी के मद्देनजर एनडीएमए ने सिफारिश की थी कि शहरी विकास मंत्रालय को शहरी बाढ़ के विभिन्न आयामों से निपटने के लिए नोडल मंत्रालय बनाया जाए।
   
फोरम में भाग लेने वाले कई सदस्यों ने इस बात को लेकर निराशा जाहिर की कि आपदा प्रबंधन का मुद्दा कई मंत्रालयों से जुड़ा है और इसीलिए इसकी सिफारिशों पर समय रहते उचित तरीके से अमल नहीं हो पाता। एक सदस्य ने बताया कि आपदा फोरम विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय से जुड़ा हुआ है और इन सभी मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय के अभाव के कारण सिफारिशों पर कार्रवाई नहीं हो पायी है।
   
भाजपा के वरिष्ठ सदस्य और विभिन्न समितियों से जुड़े अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि आपदा संबंधी संसदीय फोरम का गठन स्पीकर द्वारा किया जाता है और प्रत्येक फोरम के संयोजक सदस्यों को बैठकों के लिए आमंत्रित करते हैं और फोरम में होने वाली चर्चाओं या सिफारिशों को रिपोर्ट के रूप में संबंधित मंत्रालयों को भेजा जाता है। इसके बाद संबंधित मंत्रालय महत्वपूर्ण सिफारिशों के क्रियान्वयन के लिए अधीनस्थ विभागों को सर्कुलर जारी करते हैं या यदि कोई विधेयक लंबित है तो उसमें संशोधन कर सिफारिशों को शामिल कर लिया जाता है।
   
एनडीएमए के उपाध्यक्ष ने यह भी सिफारिश की थी कि प्राकृतिक नालों और जलमार्गों में अतिक्रमण की समस्या तथा ठोस कचरे के अव्यवस्थित निपटाने के चलते गाद निकालने की क्षमता में गिरावट से समस्या विकट हो गयी है। रेड्डी ने बताया कि वर्षामापक जैसा साधारण उपकरण लगाकर वर्षा की सघनता को मापा जा सकता है।
   
एनडीएमए ने सिफारिश की थी कि शहरी इलाकों में प्रत्येक चार किलोमीटर पर एक वर्षा मापक होना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में दिल्ली का उल्लेख करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी के 1483 वर्ग किलोमीटर के इलाके में इस समय केवल करीब 30 वर्षा मापक हैं।
   
वर्षा की सघनता मापने और बाढ़ की आशंका वाले संभावित इलाकों के बारे में समय पूर्व सूचना हासिल करने के लिए रेड्डी ने डोप्लर मौसम राडार प्रणाली की भी जरूरत बतायी थी। इसी बैठक में सांसद संजीव गणेश नाइक ने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गाद निकालने की मंजूरी नहीं दिए जाने के कारण जलाशयों की घटती गहराई और सांसद हसन खान ने उन पहाड़ी इलाकों पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत को रेखांकित किया था, जो जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण विनाशकारी बाढ़ के मुहाने पर बैठे हैं।
   
लोकसभा की अध्यक्ष मीरा कुमार आपदा प्रबंधन फोरम की अध्यक्ष हैं और इसकी बैठक फोरम के संयोजक शशि थरूर की अगुवाई में हुई थी। इस बैठक में भारतीय तकनीकी संस्थान और एनडीएमए के विशेषज्ञों के साथ ही वरिष्ठ सांसदों एम वेंकैया नायडू, टी सुब्बारामी रेड्डी, बासुदेव आचार्य, घनश्याम अनुरागी, सी एम छांग, रामसुंदर दास, हसन खान और रमाशंकर राजभर ने हिस्सा लिया था।

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