Saturday 20 July 2013

सीधे ब्राउजर पर देख सकते हैं पोर्न तो...

यही कोई शाम का समय है और पूर्वी दिल्ली में सेलफोन की एक दुकान में कुछ मजदूरों की भीड़ लगी है. वे यहां अपने साप्ताहिक मोबाइल फोन रिचार्ज और पोर्न क्लिप डलवाने केलिए आए हुए हैं. उनमें एक शख्स ऐसा है जो पुराना सस्ता स्मार्टफोन खरीदना चाहता है. चार इंच की स्क्रीन में क्रैक है, पर इससे फर्क नहीं पड़ेगा. उसके फोन पर डाउनलोड की सुविधा होने से अब उसे नया ‘गर्म वीडियो’ लोड कराने के लिए दुकानदार के पास नहीं जाना पड़ेगा.
भारत में इंटरनेट के 15 करोड़ उपभोक्ताओं की आधी से ज्यादा संख्या अपने फोन से ही वेब का इस्तेमाल करती है. वेब के इस्तेमाल में अश्लील वीडियो का हिस्सा करीब 30 फीसदी का रहता है. इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि मोबाइल इंटरनेट के उपयोग में भी इसका असर दिखाई देता है. स्मार्टफोन की लोकप्रियता बढऩे के साथ पोर्न वीडियो का इस्तेमाल भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि इससे एडल्ट कंटेंट को हासिल करना आसान हो गया है.
इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (संशोधन) एक्ट, 2008 के तहत इलेक्ट्रॉनिक रूप में पोर्न मटीरियल का प्रकाशन या उसे आगे बढ़ाना अपराध है. यही वजह है कि भारतीय क्षेत्र में कोई एडल्ट वेबसाइट या पोर्न एप्लीकेशन उपलब्ध नहीं है. लेकिन सरकार एडल्ट कंटेंट देखने पर कोई कार्रवाई नहीं करती है.
फोन पर पोर्न कोई नई बात नहीं है. इसकी शुरुआत 1990 के दशक में ही हो गई थी, जब कुछ थोड़े-से भारतीय घरों में फोन पर सेक्स चौट की वजह से फोन का बिल छह अंकों तक पहुंच जाता था. जब इंटरनेट सेलफोन तक पहुंच गया तो भारत में बहुत-से लोग अपनी पसंदीदा पोर्न साइट्स को देखने लगे. हालांकि यह स्क्रीन छोटी थी लेकिन इसमें प्राइवेसी बरकरार रहती थी, जबकि डाउनलोड स्पीड काफी धीमी थी.
ऐप्स और 3जी आने के बाद एडल्ट मटीरियल को हासिल करना और भी आसान हो गया है. विंटेज लिंडा लवलेस से सनी लियोनी तक अब सभी लोगों की जेब में मौजूद हैं. इस बारे में कोई निश्चित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि इंटरनेट के जरिए पोर्न का कितना इस्तेमाल हो रहा है. मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों से लेकर ऐप ट्रैकरों तक सभी भारतीय कंपनियां इस विषय पर बात नहीं करना चाहतीं.
एक मोटे अनुमान के मुताबिक, ग्लोबल लीगल पोर्न इंडस्ट्री कम-से-कम 10 अरब डॉलर की है, लेकिन यह आंकड़ा पुराना है. 2010 में सई गद्दाम और ओगी ओगास की अ बिलियन विकेड थॉट्स टाइटल से एक किताब प्रकाशित हुई थी, जिसे पोर्न के उपयोग पर सबसे अधिकृत अध्ययनों में से एक माना जाता है. बंगलुरू में कंप्युटेशनल न्यूरोसाइंटिस्ट गद्दाम, उपभोक्ता के व्यवहार को समझने में कंपनियों की मदद करते हैं. वे कहते हैं कि डाटा के अध्ययन से पता चलता है कि चार प्रतिशत वेबसाइट्स और 13 प्रतिशत सर्च पोर्न के लिए होते हैं. वे बताते हैं कि हो सकता है, स्मार्टफोन ने इन आंकड़ों को बदल दिया हो. गद्दाम के शब्दों में ‘‘स्मार्टफोन ने पोर्न को हासिल करना आसान बना दिया है. इसे देखते हुए बड़ी पोर्न साइट्स ने अपना मोबाइल संस्करण भी शुरू कर दिया है.’’
यह चलन स्वाभाविक भी है. यूपोर्न और पोर्नहब जैसी एडल्ट पोर्न वेबसाइट्स रखने वाली लग्जमबर्ग स्थित कंपनी मैनविन में कम्युनिकेशंस और मार्केटिंग की डायरेक्टर केट मिलर ने ई-मेल से होने वाली बातचीत में बताया कि मोबाइल और टेबलेट के जरिए उनकी साइट्स के उपयोग में बेहिसाब इजाफा हुआ है. ‘‘हमारी टीम ने इस वृद्धि पर गौर किया है और वह इन डिवाइसेस के अनुरूप इसे लगातार बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है.’’ अकेले मैनविन की दो वेबसाइट्स को भारत में हर रोज करीब 20 लाख लोग देखते हैं और इसके लिए मोबाइल का इस्तेमाल ज्यादा होता जा रहा है. अगर इसे संकेत माना जाए तो भारत में कंप्यूटरों और मोबाइल फोन के जरिए रोजाना पोर्न का कुल इस्तेमाल इससे भी कई गुना हो सकता है. मैनविन शायद दुनिया का सबसे बड़ा पोर्न नेटवर्क है और महीने में इसे करीब 16 अरब बार खोलकर देखा जाता है.
यही वजह है कि सभी बड़ी पोर्न साइट्स के पास भारतीय क्लिप्स का एक अलग सेक्शन होता है, जबकि किसी भी अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन बुकस्टोर पर भारतीय साहित्य देखने को नहीं मिलेगा. इस संख्या में वृद्धि के लिए अगर वीडियो को मुख्य इंजन बताया जाता है तो पोर्न को इसका मुख्य ईंधन कहा जा सकता है. वैसे यह सोचना बचकानी बात होगी कि हर कोई हिंदी फिल्म का ट्रेलर या समाचार क्लिप देखना चाहता है. भारत में जब से इंटरनेट का आगमन हुआ है, तभी से पोर्न साइट्स बेहद लोकप्रिय रही हैं. desibababa.com जैसी पुरानी साइट्स वीडियो और लाइव सेक्स चौट्स के साथ फलती-फूलती रही हैं तो वहीं अंतरराष्ट्रीय पोर्न कंपनियों ने भारतीय दर्शकों की मांग को भी पूरा करना शुरू कर दिया है.
पोर्न को डाटा कनेक्शन वाले किसी भी फोन से हासिल किया जा सकता है. यहां तक कि बेसिक फोन भी ब्राउजर के साथ पोर्न साइट्स के मोबाइल संस्करण को खोल सकते हैं, हालांकि उसका अनुभव ज्यादा मजेदार नहीं होगा. स्मार्टफोन पर उसे क्रोम और ऑपेरा जैसे बेहतरीन ब्राउजर्स के साथ बहुत अच्छी तरह देखा जा सकता है. ये ब्राउजर बड़ी आसानी से वीडियो दिखा सकते हैं. आइफोन का उपयोग करने वालों के लिए ब्राउजर बहुत जरूरी है क्योंकि ऐपल अपने स्टोर पर एडल्ट मटीरियल वाली ऐप्स की इजाजत नहीं देता है. ऐपल के ऐप स्टोर में सेक्स के लिए सर्च करेंगे तो आपको फूड पोर्न ऐप मिलेगी और कुछ ऐप्स सेक्स पॉजिशंस के बारे में जानकारी देती हैं.
इसकी जगह एंड्रॉयड इस बारे में ज्यादा उदार नजर आता है. गूगल प्ले पर हजारों ऐसी ऐप्स मिल जाएंगी, जो आपको आपकी पसंद का मसाला पेश करती हैं. यह पोर्न ऐप्स का भंडार है. हमें भारतीयों के लिए उनकी खास पसंद, जैसे भीगी साड़ी और नाभि वाली करीब 1,000 ऐप्स देखने को मिलीं. लेकिन एंड्रॉयड पर ‘‘हॉट आंटी’’ और ‘‘बॉलीवुड बेब’’ जैसी बहुत-सी फर्जी ऐप्स भी होती हैं जबकि कुछ अन्य यूट्यूब पर अपनी क्लिप्स की संख्या में इजाफा कर लेते हैं.
एक कंपनी ने अपना पोर्न स्टोर बनाकर एंड्रॉयड के स्टोर को चुनौती दे दी है. आइफोन का उपयोग करने वाले जहां अपने ब्राउजर के जरिए सिर्फ मिकांडी ऐप्स हासिल करने तक ही सीमित होते हैं, वहीं एंड्रॉयड के उपभोक्ता मिकांडी थिएटर और उसके संशोधित संग्रह की मुफ्त और भुगतान वाली ऐप्स को सीधे अपने फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं.
मिकांडी एलएलसी के सह-संस्थापक और सीईओ जेस एडम्स ने अमेरिका के सिएटल से ई-मेल पर कहा, ‘‘लोग ऐप्स के लिए आइफोन खरीद रहे थे, न कि वेबसाइट्स के लिए. इसलिए जब इंडस्ट्री एकमात्र वितरण चौनल से अवरुद्ध हो गई, तो दूसरों को मौका मिल गया...एंड्रॉयड के खुलेपन ने सब कुछ बदलकर रख दिया और अब बहुत-सी कंपनियां उसकी राह पर चल पड़ी हैं.’’ महीने में मिकांडी की दस लाख से भी ज्यादा ऐप्स डॉउनलोड की जाती हैं और इस पर ट्रैफिक के मामले में भारत दुनिया में छठे नंबर पर है.
लेकिन आप अगर सीधे ब्राउजर पर पोर्न देख सकते हैं तो ऐप की क्या जरूरत है? एडम्स कहते हैं कि ऐप्स का फायदा यह है कि फोन की मुख्य क्षमताओं को नियंत्रित करने के साथ ही इस पर बहुत बढिय़ा आता है. वे कहते हैं, ‘‘इससे रफ्तार बढ़ जाती है, मेमरी का मैनेजमेंट बेहतर होता है और वेबसाइट की तुलना में यूजर इंटरफेस ज्यादा अच्छा होता है...यह हमारे लिए ज्यादा उपयोगी भी होता है, जैसे हम इससे अपने फोन की सामग्री को डाउनलोड कर सकते हैं, या चाहें तो उसे हटा सकते हैं, ऑफलाइन रन कर सकते हैं या नोटिफिकेशंस को रिसीव कर सकते हैं.’’
लेकिन इस बाजार के बारे में मैनविन की सोच इससे अलग है. मिलर के मुताबिक, ‘‘आम तौर पर मोबाइल ऐप्स की एक सीमित उम्र होती है. हमें पूरा भरोसा है कि इस समय मोबाइल या टेबलेट पर यूजर एक्सपीरियंस पर ध्यान देना सबसे ज्यादा जरूरी है.’’
लेकिन एंड्रॉयड सिर्फ फोन तक ही सीमित नहीं है. दुनिया भर में पोर्न की भारी मांग को देखते हुए ये ऐप्स टेलीविजन, टेबलेट या किसी भी दूसरे माध्यमों पर जगह बनाने लगी हैं. मिकांडी ने सबसे पहले गूगल ग्लास के लिए ऐप की घोषणा की थी. फोन पर कब्जा करने के बाद पोर्न अब नई राहें तलाशने और ईजाद करने को तैयार है. और भारत का बड़ा पोर्न ग्राहक बाजार उनके सामने पड़ा है.

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