
किसी ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में मकान खरीदते समय हम अक्सर सुपर एरिया के हिसाब से भुगतान करते हैं। सुपर एरिया में पूरा कवर्ड एरिया और कॉमन एरिया भी शामिल होता है, जिसमें लिफ्ट, कॉरिडोर, सीढ़ियां, क्लब हाउस और जिम आदि भी शामिल होते हैं।
लेकिन इस पूरे खेल में काफी बातें बड़ी चतुरता से छुपा ली जाती हैं। हमें यह नहीं बताया जाता कि वास्तव में सुपर एरिया है कितना और उसमें हमारा अविभाजित हिस्सा कितना है। पाठकों को यह जान कर हैरानी होगी कि दिल्ली एनसीआर में कई ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं, जिनमें डेवलपर्स ने खरीदारों को ‘आभासी’ सुपर एरिया बेच कर मोटा मुनाफा कमाया है। यह सुपर एरिया न तो कागजों पर स्पष्ट होता है और न ही जमीन पर ही इसकी कोई साफ तस्वीर होती है। एचटी एस्टेट द्वारा फरीदाबाद के एक वास्तविक केस की छानबीन में यह बात सामने आई कि एक डेवलपर को ‘डायरेक्टर जनरल टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग’ (डीजीटीसीपी) की ओर से वर्ष 2006 में 17.71 लाख वर्ग फीट निर्माण की इजाजत दी गई। पांच साल बाद डेवलपर ने डीजीटीसीपी के समक्ष निर्माण कार्य पूरा होने के घोषणापत्र में कहा कि उसने 2बीएचके के 1200 यूनिट बनाने में 12.71 लाख वर्ग फुट जमीन का इस्तेमाल किया और बाकी 5 लाख वर्ग फुट भूमि खाली छोड़ दी। हैरानी की बात यह है कि इसी प्रोजेक्ट में उसने 3 बीचएचके के 627 फ्लैट भी बेचे, जिसमें से हर फ्लैट 1500 वर्ग फुट में बना हुआ था। इसका अर्थ यह हुआ कि डेवलपर ने इन फ्लैट्स को बनाने में 9.4 लाख वर्ग फुट भूमि का इस्तेमाल किया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर जब उसके पास केवल पांच लाख वर्ग फुट भूमि ही बची थी तो 9.4 लाख वर्ग फुट पर निर्माण कैसे किया। उसे 4.4 लाख वर्ग फुट अतिरिक्त जमीन कहां से मिली। यह सब सुपर एरिया के अस्पष्ट और ठगने वाले आंकड़ों की वजह से ही हुआ। आरटीआई कार्यकर्ता, आशीष कौल का कहना है, ‘अगर मेरे फ्लैट की माप 1400 वर्ग फीट है, जिसमें कवर्ड एरिया और कॉमन एरिया भी शामिल होता है तो बिल्डर इसे 1600 वर्ग फीट की कीमत पर बेचता है और बाकी 200 वर्ग फीट की कोई जवाबदेही नहीं होती।’ जब हमने डेवलपर से बात करने की कोशिश की तो उसके एक वरिष्ठ अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, ने सुपर एरिया का हिसाब लगाने का अपना जो फॉर्मूला बताया, वह संदेहास्पद था। जब हम प्राधिकरण के समक्ष अपना ले-आउट प्लान प्रस्तुत करते हैं तो उसमें यह बात साफ की जाती है कि हम कितना वर्टिकल (लम्बवत) और हॉरिजोंटल (क्षैतिज) एरिया कवर करेंगे। इसमें सभी फ्लैट्स का एरिया, दीवारों का एरिया और क्लब जैसा कॉमन एरिया भी शामिल होता है, इसलिए हम कुल बिल्ट एरिया घोषित करते हैं। लेकिन इसके अलावा भी कुछ एरिया होता है, जो बिल्ट एरिया में नहीं आता, जैसे ओपन बालकनी एरिया आदि, इसे अपार्टमेंट के सुपर एरिया में जोड़ लिया जाता है। जब आप किसी फ्लैट के सुपर एरिया का हिसाब लगाते हैं तो यह बिल्ट-अप एरिया से ज्यादा हो जाता है।
इस बात का जवाब देते हुए कौल कहते हैं, ‘किसी भी हिसाब से 1827 फ्लैट्स का कुल बालकनी एरिया 4.4 वर्गफीट नहीं होता। यह डेवलपर्स का छलावा है।’ डेवलपर्स द्वारा ठगे जाने से बचने के लिए सबसे पहले आपको किसी ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के कॉमन एरिया में अपना हिस्सा जानने की जरूरत है। कॉरिडोर, रास्ता, सीढ़ियां, नीचे या ऊपर बनी पानी की टंकियां, सीढ़ियों के ऊपर का स्थान, एंट्रेस लॉबी, बिजली के सब-स्टेशन, पम्प हाउस, गार्ड रूम आदि सामूहिक भूमि में आते हैं। ऐसे में एक ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, जिसमें दो से तीन हजार निवासी हों, अविभाजित सामूहिक भूमि में किसी एक का हिस्सा निकाल पाना आसान नहीं होता। दिल्ली एनसीआर के अन्य रीयल स्टेट डेवलपर्स की भी यही कहानी है। अमित (बदला नाम) का ही उदाहरण लें। अमित ने नोएडा में वर्ष 2008 में एक जानी-मानी ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में 1625 (सुपर एरिया) वर्गफीट का एक तीन बेडरूम अपार्टमेंट खरीदा। उसी फ्लैट का नोएडा प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत प्रोजेक्ट में एरिया 1297 वर्ग फीट दिखाया गया था। फ्लैट्स बन कर तैयार हो गए थे, तब प्राधिकरण ने डेवलपर को एफएआर (फ्लोर एरिया रेशो) 1.5 से बढ़ाकर दो करने की इजाजत दे दी। इसका अर्थ यह था कि वह डेवलपर और मंजिलों का निर्माण कर सकता था या भूमि का इस्तेमाल कर सकता था, लेकिन अमित के फ्लैट, जो प्राधिकरण द्वारा एफएआर बढ़ाने की इजाजत देने से पहले ही तैयार हो चुका था, को डेवलपर ने प्राधिकरण को दिए गए नये ले-आउट प्लान में 1326 वर्ग फीट का दिखाया। इतना ही नहीं, जब उसने इस फ्लैट को 2013 में पंजीकृत करवाया तो सब-लीज डीड में कवर एरिया 1186 वर्ग फीट और कॉमन एरिया 439 वर्ग फीट दिखाया गया यानी कुल 1625 वर्ग फीट। अमित का कहना है, ‘मुझे अपने फ्लैट का कुल क्षेत्रफल ही नहीं पता। मैं नहीं जानता कि यह 1297 वर्गफीट है, 1326 वर्गफीट है, 1186 वर्गफीट है या 1625 वर्गफीट है। मैं बस इतना जानता हूं कि मैंने 1625 वर्गफीट के पैसे दिए हैं।’
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