Wednesday, 3 July 2013

थैंक्यू पोपू

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thanku u papu
डिंपल, ऋचा और रूमी पोपू के साथ ऑटो से उतरकर नीचे की तरफ चलने लगीं। पोपू ने कूं-कूं करना शुरू कर दिया था, जैसे उसे किसी खतरे का आभास हो रहा हो। जैसे-जैसे वे सब पानी की तरफ बढ़ रहे थे, पोपू की परेशानी और उसकी आवाज बढ़ती ही जा रही थी।
जल्दी तैयार हो जाओ रूमी, सुबह हो गई। देखो तुम्हारी फ्रेंड्स डिंपल और ऋचा भी आ गई हैं। ‘बस मम्मी दो मिनट, चलो पोपू चलते हैं, वर्ना मम्मी डांटेंगी’- रूमी पोपू से बोली और पोपू उसे देखकर पूंछ हिलाने लगा। रूमी और पोपू की दोस्ती बड़ी पुरानी थी। दोनों एक-दूसरे के बिना न खाना खाते थे और न खेलने जाते थे। सोते भी साथ-साथ ही थे। आज रविवार का दिन था और रूमी अपनी सहेलियों डिंपल और रिचा के साथ बाढ़ का पानी देखने जा रही थी। ‘बच्चों, वैसे तुम लोग इतनी सुबह-सुबह कहां जा रहे हो’। मां की यह बात सुनते ही रूमी झट से बोली, ‘मम्मी हम लोग बस इंद्रप्रस्थ पार्क तक जा रहे हैं। हमारी मैडम ने कहा है कि बहुत सारे पत्ते इकट्ठे करके होमवर्क कॉपी में लगाने हैं’। रूमी को पता था कि मां से ये झूठ ज्यादा देर तक नहीं छिपेगा, लेकिन फिर भी वो मम्मी को कुछ भी नहीं बताना चाहती थी। ‘अरे रूमी, पोपू को वहां क्यूं ले जा रही हो।’ डिंपल ने धीरे से पूछा। ‘डिंपल, मैं पोपू के बिना पानी देखने नहीं जाऊंगी और अगर ये नहीं गया तो दिनभर रो-रोकर मम्मी को परेशान करेगा।’- रूमी ने डिंपल के कान में कहा। तीनों सहेलियां बड़े उत्साह से आईटीओ के यमुना घाट की तरफ चल पड़ीं। ‘ऑटो वाले भइया हमें ब्रिज से नीचे की तरफ जाना है तो हमें थोड़ा आगे उतारिएगा।’- रूमी बोली। डिंपल, ऋचा और रूमी, पोपू के साथ ऑटो से उतरकर नीचे की तरफ चलने लगीं। पोपू ने कूं-कूं करना शुरू कर दिया था, जैसे उसे किसी खतरे का आभास हो रहा हो। जैसे-जैसे वे सब पानी की तरफ बढ़ रहे थे पोपू की परेशानी और उसकी आवाज बढ़ती ही जा रही थी। ‘पोपू चुप रहो, वर्ना तुम मजे़ नहीं कर पाओगे।’- रूमी उसे पुचकारकर बोली। ‘रूमी हम लोगों का इतने पास जाना सही है क्या?’ रिचा ने डरकर पूछा। रूमी ने तपाक से जवाब दिया- ‘अगर तुझे इतना ही डर था तो तू आई क्यूं? तुझे डर लग रहा है तो तू जा, मैं डिंपल के साथ चली जाऊंगी।’ ‘अरे यार तू गुस्सा मत हो, मैं तेरे साथ जाऊंगी।’ रिचा बोली। तीनों सहेलियों का अपने माता-पिता को न बताकर जाना बेहद खतरनाक था, लेकिन इस झूठ के लिए वे अपने माता-पिता को ही जिम्मेदार मानती थीं। वे कई दिनों से अपने पापा से जिद कर रही थीं कि उन्हें यमुना का पानी दिखाने ले जाएं, लेकिन समय की कमी के कारण वे नहीं जा पा रहे थे।

‘रूमी यहां तो बहुत कीचड़ है’- रिचा चिल्लाकर बोली। नीचे बाढ़ के पानी तक पहुंचने का रास्ता कोई सीधा-सादा नहीं था। गंदी काई, कीचड़-मिट्टी और जगह-जगह भरा पानी खतरे की तरफ इशारा कर रहा था। तीनों सहेलियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थीं और पानी की आवाज तेज होती जा रही थी। तीनों के मन में कहीं न कहीं इस बात का डर भी था कि कहीं कुछ हो गया तो? लेकिन मन में पानी की लालसा के आगे उनका डर बहुत पीछे छूट चुका था। पैर कीचड़ में धंस रहे थे, लेकिन पानी देखने के जुनून में वे दलदल की कहानी भी भूल गई थीं। ‘वाह यार इतना पानी तो मैंने आज तक नहीं देखा’- बाढ़ के पास पहुंचते ही रूमी चिल्लाई। ‘मम्मी-पापा तो हमेशा झूठ बोलते हैं कि उनका कहना नहीं मानूंगी तो कभी मस्ती नहीं कर पाऊंगी’, रूमी बड़बड़ाई। ‘पर आज तो कितना मजा़ आने वाला है’। उधर पोपू की परेशानी देखने लायक थी। वह बेजुबान जानवर सिर्फ भौंक-भौंककर ही उन्हें सचेत कर सकता था। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि उन तीनों बेवकूफों को कैसे समझाए कि रुको! आगे खतरा है। वह कभी आगे भागता तो कभी पीछे, कभी आड़ा भागता, तो कभी तिरछा, रोता, भौंकता, लेकिन गले के पट्टे के आगे वो बेहद मजबूर था। उसका हर प्रयास असफल हो रहा था। पानी को करीब से देखने के उत्साह में रूमी बोली- ‘चलो पानी के पास चलते हैं’। ‘पागल हो क्या, हम लोग डूब गए तो’- डिंपल, रिचा एक साथ चिल्लाईं। ‘जब डूबने का ही डर था तो मेरे साथ यहां तक क्यूं आईं, घर बैठकर कार्टून देखतीं। चलो पोपू हम दोनों चलते हैं।’- रूमी चिढ़कर आगे बढ़ने लगी। पोपू ने भी अपने पैर मिट्टी में गड़ाकर ना का इशारा किया पर रूमी ने उसे अनदेखा कर दिया। ‘अच्छा, रूमी रुको हम भी चलते हैं, लेकिन पोपू को यहीं छोड़ दो’। तीनों सहेलियां आगे बढ़ीं। उस दलदली रास्ते पर आगे बढ़ते देखकर पोपू भौंका पर तीनों के सिर पर सवार भूत के आगे उन्हें प्यारे पपी की आवाज भी सुनाई नहीं दी। रूमी अपनी बहादुरी का दिखावा करने के लिए पानी में जाने लगी।

तभी अचानक पानी के पास बने कीचड़ में रूमी का पैर फंस गया। वो लड़खड़ाने लगी और उसका बैलेंस खराब हो गया। ये देखते ही डिंपल और रिचा जोर-जोर से बचाव के लिए चिल्लाईं, लेकिन घाट पर तो कोई भी नहीं था। पानी ज्यादा होने से कोई वहां नहीं जा रहा था। अब दोनों सहेलियों को समझ नहीं आया कि वो रूमी को कैसे बचाएं, सभी रोने लगीं। यह सब देखकर पोपू का दिमाग तेजी से चला। वह भागकर गया और यमुना पुल पर अमरूद बेच रहे एक आदमी की पेंट खींचने लगा। जब उस आदमी को शक हुआ तो वो उसके साथ घाट पर पहुंचा। वहां उसने देखा कि रूमी के पैर कीचड़ में फंसे हुए हैं और वो पानी में कभी भी गिर सकती है। उस आदमी ने जल्दी से दूसरे लोगों को आवाज दी। सभी वहां आए और उन्होंने मिलकर रूमी को वहां से निकाला। लोगों का शोरगुल देख पुलिस भी वहां पहुंच गई। अब तो तीनों सहेलियों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई कि मम्मी-पापा से बहुत डांट पड़ेगी। वह पुलिस इंस्पेक्टर को मनाते हुए बोलीं, ‘सॉरी अंकल, आगे से ऐसा नहीं होगा’। इंस्पेक्टर अंकल ने कहा, ‘मम्मी-पापा को तो बताना ही पड़ेगा। हां, पर मैं तुमसे वायदा करता हूं कि मम्मी-पापा तुम सभी को डांटेंगे नहीं।’ बस फिर क्या था, आधे घंटे में ही सभी के मम्मी-पापा वहां पहुंच गए। पुलिस अंकल ने उन्हें हिदायत दी कि वो बच्चों का ध्यान रखें और उन्हें अकेले ऐसी जगहों पर न आने दें। यह सुनकर तीनों को अफसोस हुआ कि उनकी वजह से मम्मी-पापा को यह सब सुनना पड़ा। रूमी, डिंपल और रिचा ने सबके सामने कान पकड़कर मम्मी-पापा से सॉरी कहा। इस सबके बीच पोपू रूमी की टांग चाटने लगा, रूमी ने उसे गले से लगाया और कहा, ‘थैंक्यू पोपू’।

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