Saturday 24 August 2013

मूवी रिव्यू: मद्रास कैफे

Madras Cafe
Madras CAfe
इस फिल्म के निर्माताओं की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया जो बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ नहीं माना जाता। निर्माता, ऐक्टर जॉन अब्राहम की यह फिल्म उस साजिश को परत दर परत पेश करती है, जिसकी वजह से देश के एक्स प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। जबर्दस्त रिसर्च, बेजोड़ फटॉग्राफी और जॉन की गजब ऐक्टिंग इस फिल्म की ऐसी खासियतें है जिनकी वजह से इस फिल्म को देखा जाना चाहिए।

कहानी: 80-90 के दशक में जब श्रीलंका तमिल और सिंहली जातीय हिंसा की आग में सुलग रहा है, रिसर्च ऐंड अनैलेसिस विंग- रॉ (RAW) का हेड रॉबिन दत्ता (सिद्धार्थ बसु) पड़ोसी देश में चलती इस सिविल वॉर को लेकर तनाव में है। दत्ता मेजर विक्रम सिंह (जॉन) रॉ के एक ऑपरेशन को कामयाब बनाने के मकसद से श्रीलंका भेजता है। यहां विक्रम को पहले से इसी एजेंसी के लिए काम कर रहे अपने सीनियर सहयोगी बाला की मदद से विद्रोही एलटीएफ हेड अन्ना भास्करन (अजय रत्नम) को शांति वार्ता में शामिल होने और तुरंत युद्ध विराम का ऐलान करने के लिए राजी करना है। अन्ना और उसका संगठन शांति सेना का विरोध करता है और शांति सेना के जवानों को भी अपने निशाने पर लेता है। अन्ना को वहां रहने वाले तमिलों की पूरी आजादी और उनके लिए अलग मुल्क चाहिए। जाफना आने के बाद विक्रम उस वक्त हैरान रह जाता है, जब उसे पता चलता है कि उसका ऑपरेशन नाकाम होने की वजह अपने कुछ लोगों का एलटीएफ ग्रुप के साथ मिला होना है। विक्रम गुरिल्ला वॉर को कवर करने के लिए लंदन से यहां आई हुई वॉर जर्नलिस्ट जया साहनी (नरगिस फाखरी) की मदद लेता है। इसी ऑपरेशन के दौरान विक्रम को एलटीएफ द्वारा विदेशी शक्तियों के साथ मिलकर देश के एक्स प्राइम मिनिस्टर की हत्या करने की साजिश का पता चलता है। विक्रम के हाथ कुछ ऐसे पुख्ता सबूत लगते हैं जो एक्स पीएम की हत्या की साजिश को बेनकाब करने के लिए बहुत है। सरकारी कायदे-कानूनों की आड़ में सुरक्षा एजेंसियां इस साजिश की जानकारी मिलने के बावजूद एक्स पीएम को सुरक्षा कवर देने को राजी नहीं होतीं।

ऐक्टिंग: जॉन ने गजब की ऐक्टिंग की है। यकीनन रॉ एजेंट विक्रम सिंह के किरदार में जॉन ने ऐसी बेहतरीन ऐक्टिंग की है, जिसका लोहा उनके आलोचक भी कबूल करेंगे। वॉर जर्नलिस्ट जया के किरदार में नरगिस हमेशा अंग्रेजी और जॉन हिंदी बोलते नजर आते हैं। अच्छा होता इन सीन्स में नरगिस भी थोड़ी बहुत कामचलाऊ हिंदी ही बोलतीं। सिद्धार्थ बसु ने रॉ हेड के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है।

डायरेक्शन: सरकार ने फिल्म को असलियत के करीब रखने के मकसद से चालू मसालों का जरा भी सहारा नहीं लिया। सरकार और उनकी टीम ने इस सब्जेक्ट पर जबर्दस्त मेहनत और रिसर्च करने के बाद फिल्म शुरू की। फिल्म कहीं भी अपने सब्जेक्ट से नहीं भटकती। शुजीत की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने करीब दो घंटे की इस फिल्म में श्रीलंका में फैली जातीय हिंसा, नरसंहार और देश के एक्स पीएम की हत्या की साजिश तक के घटनाचक्र को ऐसे बेहतरीन ढंग से पर्दे पर उतारा है कि दर्शक शुरू से आखिर तक फिल्म के साथ जुड़ा रहता है।

क्यों देखें: अगर आप इंडियन सिनेमा में होते बेहतरीन बदलाव को देखना चाहते हैं, तो मद्रास कैफे को बिल्कुल मिस न करें। लीक से हटकर बनी उन फिल्मों की बेहद छोटी लिस्ट में जॉन की इस फिल्म को गर्व के साथ शामिल किया जा सकता है। रॉ के कामकाज के बीच अफसरशाही और राजनीति के खेल और पल-पल बदलते घटनाचक्र को बेजोड़ ढंग से पेश किया गया है। अगर आप सिर्फ मौज-मस्ती करने या फैमिली के साथ पिकनिक के मूड में हैं तो फिल्म पसंद नहीं आएगी।

No comments:

Post a Comment