Wednesday 28 August 2013

कृष्ण जन्माष्टमी

"कृष्ण जन्माष्टमी पर सभी हिन्दू धर्म को
मानने वाले भगवान
श्री कृष्ण जी महाराज को याद करते हैं. कुछ उन्हें
गीता का ज्ञान देने के लिए याद करते हैं कुछ उन्हें दुष्ट
कौरवों का नाश करने के लिए याद करते हैं.पर कुछ लोग उन्हें
अलग तरीके से याद करते हैं.
फिल्म रेडी में सलमान खान पर
फिल्माया गया गाना “कुड़ियों का नशा प्यारे,नशा सबसे
नशीला है,जिसे देखों यहाँ वो,हुसन की बारिश में गीला है,इश्क
के नाम पे करते सभी अब रासलीला है,मैं करूँ
तो साला,Character ढीला है,मैं करूँ तो साला,Character
ढीला है.”
सन २००५ में उत्तर प्रदेश में पुलिस अफसर डी के पांडा राधा के
रूप में सिंगार करके दफ्तर में आने लगे और कहने लगे की मुझे कृष्ण से
प्यार हो गया हैं और में अब उनकी राधा हूँ. अमरीका से
उनकी एक भगत लड़की आकर साथ रहने लग
गयी.उनकी पत्नी वीणा पांडा का कथन था की यह सब ढोंग हैं.
इस्कोन के संस्थापक प्रभुपाद जी एवं अमरीका में धर्म गुरु
दीपक चोपरा के अनुसार ” कृष्ण को सही प्रकार से जानने के
बाद ही हम वलीनतीन डे (प्रेमिओं का दिन) के सही अर्थ
को जान सकते हैं.
इस्लाम को मानने वाले जो बहुपत्नीवाद में विश्वास करते हैं
सदा कृष्ण जी महाराज पर १६००० रानी रखने का आरोप
लगा कर उनका माखोल करते हैं.
स्वामी दयानंद अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण
जी महाराज के बारे में लिखते हैं की पूरे महाभारत में श्री कृष्ण
के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आपत पुरुष
कहाँ हैं.स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान विद्वान
सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं
फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण
करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़
आदि प्रसिद्द करना उनका अपमान नहीं तो क्या हैं.श्री कृष्ण
जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का अधर क्या हैं?
इन गंदे आरोपों का आधार हैं पुराण. आइये हम सप्रमाण अपने
पक्ष को सिद्ध करते हैं.
पुराण में गोपियों से कृष्ण का रमण करना
विष्णु पुराण अंश ५ अध्याय १३ श्लोक ५९,६० में लिखा हैं
वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर
भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति “विषय भोग”
की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण “भोग”
किया करती थी. कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते
हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे.
कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के रचियता ने
श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं. भागवत
पुराण स्कन्द १० अध्याय ३३ शलोक १७ में लिखा हैं -
कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम
भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे
खुलकर हास विलास ‘मजाक’ करते थे.जिस प्रकार बालक तन्मय
होकर अपनी परछाई से खेलता हैं वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन
ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीरा ‘विषय भोग’ किया.
भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय २९ शलोक ४५,४६ में लिखा हैं -
कृष्णा ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर
गोपिओं के साथ प्रवेश किया. वह स्थान जलतरंगों से शीतल व
कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था. वहां कृष्ण ने गोपियों के
साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ
दबाना , उनकी छोटी पकरना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे
का नारा खींचना, स्तन (पकरना) मजाक करना नाखूनों से उनके
अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से
देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के
द्वारा नवयोवना गोपिओं को खूब जागृत करके उनके साथ
कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया.
ऐसे अभद्र विचार कृष्णा जी महाराज को कलंकित करने के लिए
भागवत के रचियता नें स्कन्द १० के अध्याय २९,३३ में वर्णित
किये हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं
वर्णन नहीं कर रहा हूँ.
राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन
राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं. महाभारत में
राधा का वर्णन तक नहीं मिलता. राधा का वर्णन
ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनिय वृतांत का वर्णन करते
हुए मिलता हैं.
ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ शलोक
५९,६०,६१,६२ में लिखा हैं की गोलोक में कृष्ण
की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकर
लिया तो शाप देकर कहाँ – हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने
से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता हैं – हे चंचल , हे अति लम्पट
कामचोर मैंने तुझे जान लिया हैं. तू मेरे घर से चला जा. तू
मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं, तुझे
मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा. हे
सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त हैं
इसे निकल कर बहार करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं.
ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय १५ में राधा का कृष्ण
से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा हैं जिसका सामाजिक
मर्यादा का पालन करते हुए में यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर
रहा हूँ.
ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ७२ में कुब्जा का कृष्ण
के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं .
राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं. राधा कृष्ण के
बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण
से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी चूँकि गोलोक में रायण
कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ
जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यसोधा का भाई
था इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण
की मामी हुई.
कृष्ण की गोपिओं कौन थी?
पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय २४५ कलकत्ता से प्रकाशित में
लिखा हैं की रामचंद्र जी दंडक -अरण्य वन में जब पहुचें तो उनके
सुंदर स्वरुप को देखकर वहां के निवासी सारे ऋषि मुनि उनसे
भोग करने की इच्छा करने लगे. उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अंत
में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब
उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया. इससे उन
गोपियों की मोक्ष हो गई. वर्ना अन्य प्रकार से उनकी संसार
रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती.
क्या गोपियों की उत्पत्ति का दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार
किया जा सकता हैं?
श्री कृष्ण जी महाराज का वास्तविक रूप
अभी तक हम पुराणों में वर्णित गोपियों के दुलारे, राधा के
पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय में पढ़ रहे थे
जो निश्चित रूप से असत्य हैं.
अब हम योगिराज, निति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण
जी महाराज के विषय में उनके सत्य रूप को जानेगे.
आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र
चटर्जी जिन्होंने ३६ वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर
श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं
की महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक
ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी २ या ३ या १६०००
पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. रुक्मणी से
विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले
गए और १२ वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के
पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था. यह
श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम १६०००
गोपियों के साथ जोड़ा जाता हैं. महाभारत के श्री कृष्ण
जैसा अलोकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस
जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता हैं.
स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते हैं
जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहाँ हैं. पांड्वो द्वारा जब
राजसूय यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ
का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त
समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू
महात्मा आदि उपस्थित थे.वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज
की श्रेष्ठता समझे की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे
पैर धोने का कार्य भार लिया. श्री कृष्ण जी महाराज
को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं
क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव
सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे
पांडवो को विजय भी दिलवाई.
ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी,
चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय
नहीं तो और क्या हैं और इस सभी मिथ्या बातों का श्रेय
पुराणों को जाता हैं.
इसलिए महान कृष्ण जी महाराज पर कोई व्यर्थ का आक्षेप न
लगाये एवं साधारण जनों को श्री कृष्ण जी महाराज के
असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के लिए
पुराणों का बहिष्कार आवश्यक हैं और वेदों का प्रचार
आती आवश्यक हैं.
और फिर भी अगर कोई न माने तो उन पर यह लोकोक्ति लागु
होती हैं-
जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष हैं?
प्रोफैसर उत्तम चन्द शरर जन्माष्टमि पर सुनाया करते थे
: तुम और हम हम कहते हैं आदर्श था इन्सान था मोहन |
…तुम कहते हो अवतार था, भगवान था मोहन ||
हम कहते हैं कि कृष्ण था पैगम्बरो हादी |
तुम कहते हो कपड़ों के चुराने का था आदि ||
हम कहते हैं जां योग पे शैदाई थी उसकी |
तुम कहते हो कुब्जा से शनासाई थी उसकी ||
हम कहते है सत्यधर्मी था गीता का रचैया |
तुम साफ सुनाते हो कि चोर था कन्हैया ||
हम रास रचाने में खुदायी ही न समझे |
तुम रास रचाने में बुराई ही न समझे ||
इन्साफ से कहना कि वह इन्सान है अच्छा |
या पाप में डूबा हुआ भगवान है अच्छा ||"

No comments:

Post a Comment