Monday 19 August 2013

फिल्म रिव्यू- चेन्नई एक्सप्रेस: शाहरुख की इमेज को कॉमेडी के ट्रैक पर खूब दौड़ाया रोहित शेट्टी ने


'चेन्‍नई एक्‍सप्रेस' का एक दृश्‍य
फिल्म रिव्यू: चेन्नई एक्सप्रेस
एक्टरः शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, सत्याराज, निकितन धीर, प्रियमणि
ड्यूरेशनः 2 घंटे 22 मिनट
डायरेक्टरः रोहित शेट्टी
तीन स्टार
टेन प्वाइंट रिव्यू

1. एक लड़का था. सांवला सा, औसत चेहरे और कद काठी वाला. उसने नब्बे के दशक में हमें सिखाया कि भोलेपन के साथ, सही नीयत के साथ और स्मार्टनेस के साथ प्यार करो तो उसे हासिल भी किया जा सकता है. उसने एक यकीन पैदा किया रूमानियत के इर्द गिर्द. दर्जनों फिल्में बनीं उस लड़के शाहरुख के इर्द गिर्द जिन्होंने इस फलसफे को नए नए अध्याय मुहैया कराए. 'चेन्नई एक्सप्रेस' अब अधेड़ हो चले उस लड़के की यादों को बार-बार नए ढंग से याद कराती है. फिल्म की शुरुआत में ही 'डीडीएलजे' की तर्ज पर शाहरुख ट्रेन से लटकते हैं और दरवाजे की तरफ बेतहाशा भागती दीपिका को हाथ बढ़ाते हैं. इस फिल्म में शाहरुख की कई फिल्मी छवियों को, उनके स्टाइल को, उनके गानों को बखूबी इस्तेमाल किया गया है. इसलिए शाहरुख के दीवानों को एक फिल्म में शाहरुख की जर्नी का रेफरेंस देखना लुभाता है. 2. एक और लड़का है, रोहित शेट्टी. पिता एक्शन डायरेक्टर शेट्टी थे. सो उसने जो पहली फिल्म बनाई 'जमीन', उसमें जमकर एक्शन रखा. मगर फिल्म नहीं चली. रोहित को सबक मिला कि एक्शन तो ठीक है, मगर पब्लिक को एंटरटेन करने के लिए कॉमेडी की डोज भी चाहिए. फिर सामने आई 'गोलमाल' फ्रेंचाइजी, 'बोल बच्चन' और 'सिंघम' जैसी फिल्में जिनमें इन दोनों का शानदार मेल दिखा. अच्छे गाने, सिचुएशनल कॉमेडी, एक लव स्टोरी और ऐसा एक्शन जो हीरो को हीरो बनाता है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में भी यही सब है. मगर इसमें एक चीज और जुड़ गई, जिसका जिक्र ऊपर किया गया. शाहरुख खान. ये बड़ा दांव था, जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हुआ है. 'चेन्नई एक्सप्रेस' में शाहरुख को रखने के फेर में वो चीज मिसिंग हो गई, जिसकी हमें आदत है. अजय देवगन का भुजा फड़काता एक्शन. इसके अलावा किरदार के ऊपर स्क्रीन इमेज भी ओवरलैप हो गई. इन सबको भूल जाएं तो रोहित शेट्टी की फिल्मों के दीवानों को निराश नहीं होना पड़ेगा.
3. 'चेन्नई एक्सप्रेस' की कहानी कुछ यूं है कि राहुल के मां पापा नहीं हैं. दादा जी थे. अब नहीं हैं वो, मगर है उसकी दादी का कहा, कि राहुल को मुंबई से रामेश्वर जाकर दादा जी की अस्थियां बहानी हैं. मगर 40 के हो गए और मस्ती के बहाने खोजते राहुल को तो दोस्तों के साथ गोवा जाना है. दादी का मन रखने के लिए वो चेन्नई एक्सप्रेस ट्रेन में सवार होता है, अगले स्टेशन पर उतरने के लिए. मगर वो उतरता है एक नई जमीन पर. दक्षिण भारत में, जिसको लेकर लाख फसाने हैं उत्तर भारतीयों के. फिल्में देखकर, किस्से सुनकर बने, बोरियत से भरे और असलियत की जमीन पर हकलाते से. बहरहाल. राहुल को ट्रेन में मिलती है घर से शादी से बचने के लिए भागी मीना. मीना के फेर में राहुल एक गांव में पहुंचता है. मीना के डॉन पिता से मिलता है. मीना के दावेदार एक पहलवान से दिखते युवक से मिलता है. भागो. बचो. रुको. फिर भागो. इस फेर में प्यार हो जाता है और आखिरी में शाहरुख की ही फिलॉस्फी में कहें तो सब ठीक हो जाता है.
4. चेन्नई एक्सप्रेस हिंदी फिल्म है. मगर इसमें किरदार और लोकेशन के चलते तमिल का भी जमकर इस्तेमाल हुआ है. ये ज्यादातर दर्शकों को हंसाता है, मगर दिल्ली की एक फिल्म देखकर निकली पंजाबी आंटी के शब्दों में कहें तो इल्ले इल्ले एक प्वाइंट के बाद समझ नहीं आता. तमिल के अलावा हिंदी जानने और न जानने को लेकर गढ़ा गया हास ज्यादातर दर्शकों को अच्छा लगता है. अगर आप अच्छे सिनेमा के शौकीन हैं, तो खुद पर तरस खा सकते हैं. मगर रोहित शेट्टी ने कभी इस ट्रिक को छुपाया भी तो नहीं. तो शिकायत कैसी.
5. फिल्म के गाने अच्छे हैं और शाहरुख की रोमांटिक फिल्मों के एलबम में कई नए नगीने जड़ते हैं. वन टू थ्री फोर में प्रियमणि ताजा दिखी हैं. तितली गाने में दीपिका कई तरह की दक्षिण भारतीय साड़ियों में फूलों के बीच महकती खुशबूदार लगी हैं. दूसरे गाने भी अच्छे हैं. मगर एक वक्त के बाद जब आपको लगता है कि अब कहानी में कुछ जोरदार होना चाहिए. गाना आ जाता है. पर शायद यही है रेगुलर मसाला हिंदी सिनेमा. जहां पर्यावरण की रक्षा का संदेश देने के लिए हीरो का हरे भरे मैदानों में मटकना मचलना लाजिमी है.
6. फिल्म हमें दक्षिण भारत की तमीज और तरीके दिखाती है. रोहित अब तक मुंबई, गोवा में अटके थे. मगर यहां एक नया भारत दिखता है. झरने, पहाड़, रंगीनियत से भरपूर गांव, खेत और समंदर. कैमरा वर्क और लोकेशन, इन दोनों मोर्चों पर फतेह हासिल हुई है फिल्म को.
7. जैसा वादा है, फिल्म में जमकर कॉमेडी है. कभी गानों को ट्विस्टेड ढंग में गाकर संदेश देने की कवायद, कभी तमिल और हिंदी के मेल से पैदा हुए हालात की कॉमेडी. इन सबका कोटा पूरा हुआ, तो बौना मिल गया, कुछ मोटे लोग आ गए और इन सबकी क्यूट लानत मलानत करने के लिए राहुल ने दारू पीकर दंगा भी कर दिया. रोहित को पता है कि सीरियस सिनेमा के लिए तमाम दिग्गज हैं, मगर पब्लिक तीन घंटे और सैकड़ों रुपये का टिकट पाकर जो करने आती है, वो है मजा. और उनकी मूवी अपने तईं खूब मजा देती है आम भारतीय दर्शक को.
8. शाहरुख खान को प्यार करते देखना भाता है. मगर यहां तो वह बिल्कुल आखिरी में एक प्रेमी के रूप में नजर आते हैं. उससे पहले वह हालात से जूझते एक आदमी हैं. ऐसे में वह कुछ नया, बेहतर नहीं कर पाते. कॉमेडी के लिहाज से कहें तो ज्यादा जमे नहीं शाहरुख. दीपिका जरूर मीना के रोल में रम सी गईं. उनके और शाहरुख के बीच की केमिस्ट्री लेकिन ज्यादा कुलबुलाहट पैदा नहीं कर पाई. शाहरुख का एक्शन भी उनकी कद काठी के चलते ज्यादा भरोसा पैदा नहीं कर पाता. बार-बार हवा में उछलकर शेर की दहाड़ के बैकग्राउंड स्कोर में झपट्टा मारते अजय याद आ रहे थे. बाकी कलाकारों को सिर्फ हंसाना था और इस काम के लिए उनके मास्टर के रूप में रोहित तैनात थे. अच्छा ये रहा कि शेट्टी टीम के रेगुलर फेस फिल्म में नहीं थे तो कुछ नयापन था.
9. फिल्म के प्रचार के दौरान दावा किया जा रहा था कि ये एक ही मुल्क में कभी राष्ट्रीयताओं के, भाषाओं के, तहजीबों के फर्क को दिखाती और फिर पाटती नजर आएगी. इसके लिए सबको पिरोने वाले धागे के रूप में चुनी गई एक प्रेम कहानी. मगर आखिरी में 'चक दे इंडिया' की सत्तर मिनट वाली स्पीच की तरह मीना के पिता के सामने राहुल की स्पीच उसी निष्कर्ष पर खत्म हुई कि प्यार की कोई बंधी हुई भाषा नहीं होती. पर ये तो हम पहले ही जानते थे न. है कि नहीं.
10. फिल्म देखें, अगर शाहरुख, रोहित शेट्टी, दीपिका पादुकोण, बॉलीवुड की कॉमेडी फिल्मों, गानों, नाच और धुंआधार कार उड़ाऊ एक्शन के फैन हैं. फिल्म के आखिरी में साउथ के सुपर हीरो रजनी अन्ना का योयो हनी सिंह का बनाया गाना मिस न करें. जैसा मीना राहुल को कहती है कहां से खरीदी ऐसी बकवास डिक्शनरी. तो अपनी डिक्शनरी से बकवास शब्द को निकाल दें, तो एंजॉय की जा सकती है फैमिली और खासतौर पर बच्चों के साथ जाकर चेन्नई एक्सपेस.


और भी... http://aajtak.intoday.in/story/chennai-express-movie-review-1-738598.html

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