Saturday 22 March 2014

कुछ 2013 नया हो जाएं

 दिन रह गए हैं नया साल आने में। आप भी नए साल में कुछ नया करने का संकल्प जरूर ले रहे होंगे। नई डायरी बना रहे होंगे। नई योजनाएं बनाई होंगी, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि कुछ दिन तो आपके रिजॉल्यूशंस जोर-शोर से पूरे हों और कुछ समय बाद ही वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएं। नया करने की बातें करते रहना ही काफी नहीं, इन पर टिके रहना भी जरूरी है। क्या आप तैयार हैं नए साल में खुद से किए गए वायदे पूरे करने के लिए
जैसे ही नया साल करीब आने लगता है ज्यादातर महिलाएं ढेर सारे वायदे करती हैं अपने आपसे, लेकिन अपने रिजॉल्यूशंस को एक सीरियस कमिटमेंट की तरह नहीं लेतीं। कुछ दिन बीतते-बीतते वे इन पर अमल करने के बजाय इन्हें भूलने लगती हैं। इससे उन संकल्पों का कोई मतलब नहीं रह जाता, जो आपने लिए थे। इसके बावजूद आप अगला साल आने पर फिर उत्साह के साथ रिजॉल्यूशन लेती हैं, लेकिन पिछले संकल्पों को न तो याद रखतीं और न ही उससे कोई सबक लेती हैं। जरा सोचें, ऐसे रिजॉल्यूशंस का क्या लाभ, जिसे आप खुद निभा न पाएं। इन्हें निभाना कोई मुश्किल नहीं। हां, इसके लिए थोड़ी दृढ़ता की जरूरत है।
बन नहीं पाई कूल मॉम
'लगता है मैं बच्चों पर कुछ ज्यादा ही सख्ती करती हूं। आने वाले साल में मैं कूल मॉम बनूंगी। बच्चों और पति के मोबाइल फोन भी चेक नहीं करूंगी। इससे उन्हें लगता है कि मैं उन पर विश्वास नहीं करती।' अपने आपसे बुदबुदा रही थीं अंकिता अग्रवाल। उन्हें लग रहा था कि अपनी तांक-झांक और डांट-फटकार की आदत उन्हें छोड़ देनी चाहिए। इसलिए उन्होंने नए साल में यही प्रण ले लिया। जब बच्चे लापरवाही करते तो उनका मन करता चीखने का, लेकिन खुद को समझातीं और आवाज में कोमलता लाकर बच्चों से बात करतीं। अपने टीनएज बच्चों के सेलफोन चेक करने के लिए आगे बढ़तीं, अगले ही पल खुद पर ब्रेक लगा लेतीं। घर में सब हैरान। बच्चों तक को कुछ अजीब सा लग रहा था। बात पति की समझ से भी बाहर थी। आखिर अंकिता को हुआ क्या है? कुछ दिन तक तो यह सिलसिला चला, पर ज्यादा दिन तक सहनशील बने रहने में कामयाब नहीं हो पाई अंकिता। वापस अपने रूप में आ ही गई। आज भी वह कहती हैं, 'बहुत आसान है संकल्प लेना, लेकिन निभाना उतना ही मुश्किल। अपनी आदतों को छोड़ने के लिए बहुत ताकत चाहिए जो सब में नहीं होती।'
वेट लूज करना ही है
'इस साल तो मैं अपना वेट लूज करके ही रहूंगी। चाहे कुछ भी हो जाए सुबह जल्दी उठकर सैर पर जाऊंगी। वर्कआउट में रुकावट नहीं आने दूंगी। योग क्लासेज जॉएन करूंगी। व्यायाम को भी पूरा टाइम दूंगी।' यह नया नहीं हर साल लिया जाने वाला संकल्प है, लेकिन 100 में से 90 महिलाएं तो इसे नया करने के तौर पर ही लेती हैं। हर साल एनर्जी के साथ शुरुआत भी करती हैं, लेकिन जल्दी ही सब फुस्स हो जाता है। न तो डाइट पर कंट्रोल रह पाता है और न ही समय निकल पाता है एक्सरसाइज के लिए। लाइब्रेरियन श्वेता सिंह कहती हैं, 'मुझे देर तक सोने और मॉर्निग वॉक नहीं करने की गंदी आदत है। मैं हर साल ये दोनों रिजॉल्यूशन लेती हूं, पर कभी भी पूरा नहीं कर पाती। जनवरी महीने के पाचवें दिन ही मेरा संकल्प धराशायी हो जाता है। संकल्प पूरा करने के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है, जिसका मुझमें अभाव है।'
दोस्त से पूरा हुआ संकल्प
ऐसा नहीं है कि संकल्प हमेशा टूटते ही हैं। अगर आपकी विल पॉवर मजबूत है और दोस्तों का साथ है तो आप अपने कमिटमेंट को पूरा कर सकते हैं। पेशे से होम्योपैथ चिकित्सक मधु रंजन अपने रिजॉल्यूशन को पूरा करने के बारे में कुछ यूं बताती हैं, 'स्टूडेंट लाइफ में नए साल और रिजॉल्यूशन को लेकर मन में गजब का उत्साह रहता था। मुझे आज भी वो दिन अच्छी तरह याद हैं, जब मैं मुजफ्फरपुर यूनिवर्सिटी से बॉटनी में एमएससी कर रही थी। पाच-छह लड़कियों वाला हमारा ग्रुप पूरी यूनिवर्सिटी में बेस्ट था। हम पढ़ाई-लिखाई से लेकर कॉलेज की कई दूसरी एक्टिविटीज में भी आगे रहते। नए साल पर हम लोगों ने एक रिजॉल्यूशन लिया कि हमें यूनिवर्सिटी एग्जाम में अव्वल आना है और हम लोगों ने ऐसा कर दिखाया।' मधु का मानना है, 'अगर आपके ग्रुप के किसी भी एक साथी में नेतृत्व क्षमता है तो आप आगे निकल सकते हैं। हमारे ग्रुप में रितिका बहुत तेज और होशियार थी। वह किसी भी टॉपिक पर बहस कर सकती थी और रिसर्च कर कुछ महत्वपूर्ण निकाल सकती थी। उसी की वजह से हमारा संकल्प पूरा हुआ।'
दोस्तों की मदद कारगर
लंदन में एक रिसर्च से साबित हुआ है कि सत्तर फीसदी से ज्यादा लोग अपने न्यू ईयर रिजॉल्यूशंस सात दिन में भूल जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनमें बदलाव की इच्छा का न होना है। साथ ही वे इस बदलाव के लिए अकेले जूझते रहते हैं। अपने दोस्तों की मदद नहीं लेते। अगर करीबियों की मदद लें तो संकल्प पूरे हो सकते हैं।
केवल 10 प्रतिशत रहते हैं कायम
एक सर्वे के आधार पर की गई शोध से पता चलता है कि ज्यादातर लोग न्यू ईयर रिजॉल्यूशंस कुछ ही दिन में भूल जाते हैं। रिसर्च के अनुसार छह महीने के बाद आधे लोग ही संकल्प पूरा करने के लिए मेहनत करते हैं और साल के अंत तक तो मात्र 10 प्रतिशत लोग ही संकल्प पर कायम रह पाते हैं।
क्यों टूटते हैं रिजॉल्यूशंस
-नए साल में नई ऊर्जा भरपूर होती है। हम रिजॉल्यूशंस की लंबी लिस्ट बना लेते हैं, लेकिन इन पर डटे रहना विल पॉवर का खेल है। शुरुआत तो हो जाती है, लेकिन आगे निभाना असंभव सा हो जाता है।
-अति उत्साह में हम ऐसे भारी भरकम संकल्प ले लेते हैं, जिन्हें पूरा करना हमारे लिए मुश्किल हो जाता है।
-नए साल में कुछ नया जोड़ना तो ठीक है, लेकिन बोझ की तरह नया लादना ठीक नहीं। नया करने के चक्कर में ऐसा न हो कि कुछ पुराना पीछे छूट जाए।

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