Saturday 22 March 2014

काबू में करिए परफेक्शन का प्रेशर

यह क्या किया है तुमने? ड्राइंग रूम को कूड़ा बनाकर रख दिया है। इधर चिप्स के पैकेट्स फैले हैं। कोल्ड ड्रिंक्स की खाली बोतल भी उठाकर नहीं फेंक सकते तुम? पर्स की फिक्र नहीं, जबकि इसमें तुम्हारा एटीएम कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस रखा है। कपड़े चेंज करते हो तो यूं ही छोड़ देते हो..। इतने बड़े हो गए पर ऑर्गेनाइज्ड नहीं हो पाए तुम..' लगातार बोले जा रही थीं नंदिता। ऑफिस से आने पर घर में घुसते ही ड्राइंग रूम का हाल देखकर विचलित हो गई। वह अपने बेटे अमान पर बरस पड़ीं। वैसे तो अमान को आदत थी मां के इस स्वभाव को झेलने की, लेकिन हॉस्टल से एक दिन के लिए आने पर भी मां ऐसे बोलेंगी इसका अंदेशा नहीं था अमान को। बोला, 'मां, एक दिन के लिए ही तो आया हूं और आप डांट रही हो, प्लीज रिलैक्स करने दो ना। आपको हर चीज परफेक्ट चाहिए, मैं परफेक्ट नहीं हूं..।' बच्चे के जवाब देने और ड्राइंगरूम से उठकर अपने कमरे में चले जाने पर थोड़ा सकुचाई नंदिता। एकबारगी लगा भी कि आखिर बच्चा घर आया है उसे यूं टोकना ठीक नहीं, लेकिन अगले ही पल उन्होंने चीजों को समेटना शुरू कर दिया। जब सब कुछ करीने से समेट दिया तभी उनकी सांस में सांस आई। परफेक्शन की लत जो लगी थी उन्हें।
नंदिता ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि परफेक्शन का प्रेशर रिश्तों को सुलगा सकता है। इस तरह की टोका-टोकी बच्चों को विद्रोही बना सकती है। पति को परफेक्ट देखने की चाहत उन्हें झूठ बोलने या झुंझलाने पर मजबूर कर सकती है। वास्तव में दूसरों की कमियां बर्दाश्त नहीं कर पाने की वजह से हम हमेशा टेंशन में रहते हैं। परफेक्ट होने की चाहत कहीं न कहीं हमें इम्परफेक्ट कर देती है। कभी परफेक्ट मदर होने का दबाव है तो कभी परफेक्ट गृहिणी। क्या परफेक्शन के इस प्रेशर को कम करने के लिए हमारा थोड़ा लापरवाह होना बेहतर है? आज की लाइफ स्टाइल में जब हर तरफ डेडलाइंस हैं तो कुछ कामों के प्रति लापरवाह हो जाना और दिमाग को थोड़ा रिलैक्स देना कितना जायज है, इस पर विचार करना जरूरी है।
कंट्रोल नहीं होता
'मेरे पति हमेशा कहते हैं कि तुम्हें टोकने की बड़ी आदत है। हर वक्त पीछे पड़ी रहती हो, लेकिन मैं क्या करूं? जब वह गीला टॉवेल बेड पर छोड़ देते हैं या चाय पीते समय आवाज करते हैं तो मुझसे रहा नहीं जाता। मैं जानती हूं कि मेरा टोकना उन्हें अच्छा नहीं लगेगा, पर मुझसे कंट्रोल नहीं होता। वह कहते भी हैं कि मुझे मेरी कमियों के साथ स्वीकार करो, लेकिन मैं चाहती हूं कि वह पूरी तरह से परफेक्ट हों। हर काम से पहले सोचे-समझें।' कहती चली जाती हैं मिसेज नीरा कंडलवाल। कहने को ये रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातें हैं, लेकिन आपस में टकराव का कारण बन जाती हैं। पति को परफेक्ट बनाने के चक्कर में हमेशा परेशान रहती हैं। जितनी देर पति घर में रहते हैं उनके एतराज चलते रहते हैं। लगातार खामियां निकालने से इनके बीच झगड़े बढ़ गए हैं। ऐसा नहीं है कि मिस्टर कंडलवाल इम्परफेक्ट हैं और कोई काम ठीक से नहीं कर सकते। वह एक जिम्मेदार पद पर काम कर रहे हैं, लेकिन घर में अपनी मर्जी से रहना चाहते हैं। कोई प्रेशर नहीं लेना चाहते। पत्नी की यह कथित नासमझी उन्हें बहुत परेशान करती है।
सनक न बन जाए
अनीषा त्रिपाठी की तो कहानी ही निराली है। जितनी देर किचन में काम करती हैं, चूल्हा और स्लैब ही पोंछती रहती हैं। बार-बार हाथ धोती हैं। बाहर से प्रेस होकर आए कपड़ों को पहनते समय एक बार फिर प्रेस करती हैं। घर में मेहमान बुलाती जरूर हैं, लेकिन उनके सामने ही कहना शुरू कर देती हैं कि मैं तो किचन साफ करके ही सोती हूं। कल काम वाली नहीं आएगी, इसलिए रात में ही बर्तन धो डालूंगी। नतीजा यह होता है कि मेहमानों को बेचैनी होने लगती है। वे समझते हैं कि जल्दी ही निकल जाएं, ताकि इनका काम समय से हो सके। ऐसे में अनीषा खुद भी प्रेशर में रहती हैं और दूसरों पर भी अपने दबाव को ट्रांसफर कर देती हैं। वह सभी को बताती हैं कि कितना परफेक्टली काम निपटाती हैं, परंतु उन्होंने यह समझने की कोशिश भी नहीं की कि उनका परफेक्शन कैसे दूसरों के गले की हड्डी बनता है। जिस दिन कामवाली कारपेट उठाकर नहीं झाड़े, उस दिन उसकी शामत। बच्चे हरी सब्जी से मुंह सिकोड़ें तो उनको लेक्चर और तो और पड़ोसी का बेतरतीब कपड़े सुखाना भी अखरता है उन्हें। किसी चादर में सलवट न हो, बच्चों और पति की वार्डरोब सलीके से लगी हो, कोई गमला बेतरतीब न हो, यह सब सुनिश्चित करती हैं। अनीषा के परफेक्शन की चाहत उन्हें सनकी साबित करने में लगी हैं इन दिनों। जब विरोध करते हैं पति और बच्चे तो वे कहती हैं कि जब मैं हर काम परफेक्ट करती हूं तो तुम सब क्यों नहीं?
सहजता होती है आहत
'मैं अब इतना टेंशन नहीं लेती, जैसा होता है उसको स्वीकार करने की कुछ हद तक आदत डाल ली है मैंने। किसी और का काम करने का तरीका अखरता भी है तो भी खुद पर काबू रखती हूं। शायद उम्र के साथ पेशेंस आ गई है। दरअसल कुछ दिन पहले एक साइकोलॉजिस्ट से मेरी बात हुई थी। वह कह रही थीं कि हम छोटी-छोटी बातों को इश्यू बना लेते हैं। अपनों की आदतों से नाराजगी को मन में घर करने देते हैं। इससे रिश्तों की सहजता आहत होती है। उनके कहे शब्दों का मर्म समझकर ही मैं दूसरों से परफेक्शन की उम्मीद की आदत सुधारने की कोशिश कर रही हूं। कभी कुछ मनमाफिक न देखकर भी मुंह फेर लेती हूं। थोड़ा लापरवाह होना मुझे सुकून दे रहा है। सच कहूं तो इसके बेहतर परिणाम मिल रहे हैं।' कहती हैं सिल्की बंसल। एचआर प्रोफेशनल सिल्की को पहले परफेक्शन की चाहत बहुत टेंशन देती थी, लेकिन अब उन्होंने बीच का रास्ता निकाल लिया है। झल्लाने की बजाय वह काम का तरीका समझाती हैं और पॉजिटिव वे में परिणाम की उम्मीद करती हैं। देखा जाए तो परफेक्ट बनने की कोशिश करना गलत नहीं है, लेकिन किसी दूसरे से परफेक्ट होने की उम्मीद करने से सीरियस प्रॉब्लम हो सकती है। समझने वाली बात यह है कि आप अपने हर एक काम में परफेक्ट नहीं हो सकतीं और शायद दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता।
एबिलिटी और एक्सेप्टेशंस मैच करनी चाहिए
परफेक्शन का प्रेशर महिलाओं पर दो तरह से रहता है। एक तो वे खुद को परफेक्ट साबित करने में लगी रहती हैं और दूसरे, दूसरों से परफेक्शन की उम्मीद रखती हैं। जहां तक खुद को परफेक्ट करने की बात है तो आपको खुद से एक्सेप्टेशंस और अपनी एबिलिटी को जांचना चाहिए। इनका मैच होना बेहद जरूरी है। आपको घर भी मैनेज करना है और बाहर के काम भी संभालने हैं। अगर कामकाजी हैं तो ऑफिस में भी खुद को साबित करना है। मल्टीटास्किंग के चक्कर में अपनी काबिलियत से ज्यादा काम करेंगी तो आपको फ्रस्ट्रेशन और स्ट्रेस होगा। इससे बचने के लिए आपको अपनी आकांक्षाएं रियलिस्टिक रखनी होंगी। जहां तक दूसरों के परफेक्शन की बात है तो आपको यह समझना होगा कि हर एक की लाइफ अलग होती है। दूसरों की देखा-देखी करेंगी तो हीनभावना व डिप्रेशन से ग्रस्त हो जाएंगी। इसका असर आपके दांपत्य जीवन पर भी पड़ सकता है। इसलिए खुद को संतुलित रखें। दिन में एक घंटा अपने लिए जरूर निकालें और स्ट्रेस कम करें। आप सभी को खुश नहीं रख सकतीं, जो परफेक्शन आपको तनाव दे रहा हो, उसके कोई मायने नहीं हैं।

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