Saturday 22 March 2014

सहजता से लें सहज आकर्षण

विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होना बिलकुल स्वाभाविक है। फिर भी इन बातों से माता-पिता अकसर विचलित हो जाते हैं और उन पर तरह-तरह की बंदिशें लगाने लगते हैं। मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की मानें तो यह रवैया एकदम गलत है। इस स्थिति को बहुत गंभीरता के साथ सुलझाने के रास्ते ढूंढने चाहिए।
13 से 19 की उम्र में हारमोंस में बदलाव के कारण लड़के व लड़कियों में अॅपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है। कई बार यह रिश्तों में तब्दील हो जाता है, जो हमारे सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सही नहीं माना जाता।
इस तरह के रिश्तों को टीनएजर्स अकसर छिपाने का भरसक प्रयास करते हैं। वे जानते हैं कि उनके माता-पिता विरोध ही करेंगे। ऐसे में पेरेंट्स के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि वे अपने बच्चे को सही दिशा दिखाएं। सही दिशा का मतलब यह हरगिज नहीं है कि आप उन पर रिश्ता तोड़ने के लिए दबाव डालें। मनोवैज्ञानिकों की राय में सही दिशा दिखाने से यहां आशय है कि आप टीनएजर को उसकी वरीयताएं समझाएं।
आवश्यक है स्वतंत्रता
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के मनोचिकित्सा विभाग में सीनियर कंसल्टेंट गौरव गुप्ता कहते हैं, 'टीनएज में स्वतंत्रता देना सही परवरिश का अहम हिस्सा है। फ्रीडम हर मामले में जरूरी है, चाहे उसे अपने विचार व्यक्त करने हों या फिर यह तय करना हो कि उसे किससे रिश्ता बनाना है। फिर चाहे वह टीनएज इनफैचुएशन ही क्यों न हो!'
डॉ. गौरव ऐसे रिश्तों को पूरी तरह प्राकृतिक मानते हुए कहते हैं, 'हमारे समाज में इन्हें गलत मानना एक जटिल रोग की तरह है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, अभिभावकों को चाहिए कि वे लड़कों व लड़कियों को बताएं कि उस रिश्ते को कैसे निभाना उनके हित में है।'
किसी के प्रति आकर्षित होने के बाद टीनएजर्स का ध्यान पढ़ाई-लिखाई से उचट जाता है, जो इस उम्र में सबसे अहम होता है। इस उम्र में करियर के चुनाव और उससे संबंधित पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत होती है। यानी जीवन की नींव रखने का यही समय होता है। पेरेंट्स को चिंता सताती है कि अगर उनका बच्चा अभी से इन चक्करों में पड़ गया तो कहीं उसके करियर पर बुरा असर न हो। इस दौर में जरूरत होती है सावधानी, सूझ-बूझ और मैच्योरिटी की। टीनएजर को कुछ भी समझाने से पहले अभिभावकों के लिए खुद यह समझना जरूरी हो जाता है कि उसके साथ कैसा बर्ताव करना सही होगा। गलत ठहराकर डांट देने से टीनएजर्स में हताशा आ सकती है, जिससे उनकी पढ़ाई-लिखाई प्रभावित होगी।
जरूरी है संवाद
ऐसे दौर में माता-पिता से अपेक्षित होता है कि वे अपने बेटे या बेटी से संवाद बढ़ा दें। डॉ.गौरव कहते हैं, 'जहां तक हो सके, उन्हें यह महसूस कराएं कि आप उनके दोस्त हैं। ताकि वे आपसे अपनी ज्यादा से ज्यादा बातें शेयर करने में सहज रहें। इससे टीनएजर के लिए अभिभावक की बात समझना आसान हो जाएगा।' अपने बेटे या बेटी को हल्के-फुल्के संवाद में यह समझाएं कि घंटों फोन पर बात करने से उसकी पढ़ाई और अन्य चीजों पर असर पड़ रहा है तो वे उसे सहजता से संभाल सकेंगे।
अहम है सेक्स एजुकेशन
बढ़ती उम्र में हो रहे हार्मोनल बदलाव और इनफैचुएशंस के बढ़ते चलन ने ही सेक्स एजुकेशन की मांग पर जोर दिया है। टीनएजर्स में एक्सपोजर बढ़ता जा रहा है इसलिए सेक्स जैसे विषय पर बातचीत करना उनके हित में है। हालांकि सेक्स एजुकेशन पर आज भी आम राय कायम नहीं हो सकी है। ज्यादातर माता-पिता आज भी अपने बच्चों से इन विषयों पर बात करने में हिचकिचाते हैं। डॉ. गौरव गुप्ता के मुताबिक पहले के मुकाबले अब गैरकानूनी गर्भ के मामले ज्यादा सामने आते हैं। यही वजह है कि स्कूल करिकुलम में सेक्स एजुकेशन को शामिल करने की बात उठाई जाती रही है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यदि टीनएजर्स को घर में सेक्सुअल रिलेशनशिप्स में प्रोटेक्शन इस्तेमाल करने की बात सिखाई जाए तो वे प्रेग्नेंसी के पचड़े में फंसने से बच जाएंगे। मीडिया के जरिए युवाओं में सेक्स की जानकारी पहले से ही होती है, लेकिन सेक्स एजुकेशन से उन्हें रिश्ते की हद पता चलती है।
मां-बेटी से ज्यादा दोस्त हैं हम
फैशन डिजाइनर अंजना भार्गव की बेटी अंकिता भी टीनएजर है। अंजना इस उम्र में होने वाले आकर्षणों को स्वाभाविक मानती हैं। वह कहती हैं, 'अंकिता अगर विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होती है तो मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है। मेरा रोल सिर्फ उसे बहकने से बचाना है। मैं उसकी मां से ज्यादा उसकी दोस्त हूं। यही वजह है कि अंकिता मुझे सब कुछ बताती है और मेरी सलाह भी मानती है।'
क्या कहती है मांएं
दोस्ताना अंदाज से बन गई बात
स्कूल बदलते ही मेरे बेटे का किसी लड़की के प्रति झुकाव हो गया जो उसके क्लास में ही पढ़ती थी। पढ़ाई के सिलसिले में दोनों का घर आना-जाना लगा रहता था। मुझे और मेरे पति को उनके इंटरैक्शन से कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे हमें लगा कि उनके रिश्ते में पढ़ाई कम, मौज-मस्ती ज्यादा होने लगी थी। टर्म एक्जैम्स में दोनों का ही रिजल्ट खराब आया। यही वह समय था जब हमने उनके रिश्ते के बारे में जानने का प्रयास किया। हमें पता चला कि दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं और एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने की बात भी करते हैं। जानकर खुशी हुई कि मेरे बेटे का प्राकृतिक विकास ठीक हो रहा है, लेकिन वह भटकाव का शिकार भी हो रहा था, इस बात से थोड़ी चिंता भी हुई। हम दोनों कामकाजी हैं, इसलिए पूरा दिन उस पर निगाह रखना संभव नहीं था और उचित भी नहीं। हमने सोचा कि हम उससे इस विषय में बात करेंगे। हमने एक हॉलिडे प्लान किया और बच्चे को लेकर गोवा गए। वहां हमने खूब मस्ती की और अच्छा मौका देखकर हमने उससे उसकी दोस्त के प्रति आकर्षण की बात की। हमने यह बात इतने दोस्ताना अंदाज में की कि हमारा बेटा सहजता से सब बताता चला गया। उतनी ही सहजता से हमने उसे समझाया कि जीवन के इस पड़ाव में उन दोनों की वरीयता फिलहाल पढ़ाई और करियर है। अपने रिश्ते को वे थोड़ा समय भी दे सकते हैं, ताकि वे एक-दूसरे को बेहतर समझ सकें। हमारे बेटे ने इस बात को बड़ी समझदारी से अपनाया और वापस आकर उसमें बदलाव देखने वाला था। उसने अपनी दोस्त को भी यह बात समझाई और उसके बाद दोनों का व्यवहार धीरे-धीरे सामान्य होने लगा।

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