Saturday 22 March 2014

जो हुआ उसे भूल जा

साइकोलॉजी में रिश्तों को कई बार 'एडिक्शन' भी कहा जाता है। ये एडिक्शन तब बन जाते हैं जब इनके टूटने के बाद भी आप इनमें जकड़े हों। ऐसी ही स्थिति का नतीजा होते हैं डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न। जिंदगी से पुराने रिश्ते की नकारात्मक छाप को मिटाने और आगे बढ़ने के उपाय सुझा रहे हैं हम।
रिश्ते आदत की तरह होते हैं। कई बार एक रिश्ते में कड़वा अनुभव हमें दूसरे रिश्तों को भी उसी आधार पर देखने को मजबूर कर देता है। मसलन एक गलत रिश्ते में ब्रेकअप होने के बाद भी आप उस रिश्ते को ही ढोते रहते हैं, चाहें आप दूसरे रिलेशनशिप में ही क्यों न हों! आप इस रिश्ते में भी वही सब देखना चाहते हैं, वही बदलाव करना चाहते हैं, जो आप पिछले रिश्ते में चाहते थे। कहीं न कहीं आप हर उस अवगुण को पसंद करने लगते हैं जिनसे आपको दुख पहुंचा है। साइकोलॉजी की भाषा में इस स्थिति को डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न कहते हैं।
रिलेशनशिप कंसल्टेंट विचित्रा डार्गन आनंद कहती हैं, 'डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न का एक बड़ा कॉमन केस है रिश्ते का अब्यूसिव होना। रिलशेनशिप अब्यूसिव है, लेकिन हर बार मारपीट के बाद आपका पार्टनर गिल्ट में आकर गिफ्ट्स देता है या ज्यादा केयर जताता है तो उसका अब्यूसिव ऐटीट्यूड भी धीरे-धीरे पसंद आने लगेगा। इस रिश्ते के टूटने के बाद अगले रिश्ते में भी आप कहीं न कहीं यह फैक्टर ढूंढ़ने लगेगीं, क्योंकि आपको पता है कि मारपीट के बाद प्यार ज्यादा प्रेस किया जाता है।'
इसी तरह पार्टनर के पजेसिव नेचर को केयरिंग एटीट्यूड मान लिया जाना आम बात है। विचित्रा कहती हैं, 'पजेसिवनेस से हमेशा दायरे सीमित होते हैं और केयर से इसका कोई संबंध नहीं होता। इस तरह की डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप में बंधकर लोग अपने दायरे को सीमित कर लेते हैं, जिसका नुकसान लंबे समय में अन्य रिश्तों की कीमत देकर अदा करना होता है।'
नुकसान
डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न में बंधने वाले इंसान के अंदर नकारात्मक ऊर्जा इस कदर होती है कि उसके जीवन का हर पहलू इससे प्रभावित होता है।
विचित्रा कहती हैं, 'इस तरह के रिश्तों का असर सिर्फ आपकी पर्सनैलिटी ही नहीं, बल्कि करियर और नॉर्मल जिंदगी पर भी दिखता है। मेरे पास ऐसे कई केसेज आते हैं जहां लोग रिश्ते में इस कदर जकड़े होते हैं कि उनकी जिंदगी बढ़ ही नहीं पाती। अगर एक्स-पार्टनर को लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं था तो वे रिश्ता टूटने के बाद भी लोगों से मिलने में गुरेज करते हैं। इस तरह की प्रवृलि में नुकसान लंबे समय के लिए होते हैं।'
अनजाने में ही आप इस रिश्ते की हैंडलिंग उस कड़वे रिश्ते के आधार पर करने लगते हैं। इस स्थिति को डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न कहते हैं। रिश्ता बदल जाता है, साथी बदल जाता है और समय भी बदल जाता है, लेकिन हम पिछले रिश्ते की बुरी यादों में इस कदर जकड़े होते हैं कि उनसे चाह कर भी बाहर नहीं निकल पाते। वह कड़वाहट आपके नए रिश्ते में भी झलकती है और उसकी भरपाई आपका नया पार्टनर करता है। ऐसे में आप जो रिश्ता खो चुके हैं, उसी तर्ज पर दूसरे रिश्ते को भी खो सकते हैं। मसलन अगर आप अपने पुराने रिलेशनशिप में इनीशिएटिव लेते थे और नए रिश्ते में आप इससे बच रहे हैं। साथ ही उम्मीद कर रहे हैं कि सिर्फ दूसरा ही हर बार पहल करे तो जरा सोचिए, क्या आप गलत नहीं कर रहे? क्या आप अपने बुरे अनुभव की भरपाई अपने पार्टनर से नहीं ले रहे?
रिश्ते में ऐसी स्थिति नकारात्मकता से बचने की जरूरत होती है। रिश्ता चाहे प्यार का हो या दोस्ती का, अगर उसमें नकारात्मकता घर कर जाए तो जाहिर है वह ज्यादा खिंच नहीं सकता। इसलिए बेहतर होगा कि पुराने रिश्ते की परछाई से बाहर आएं और एक नई जिंदगी की शुरुआत करें।
लक्षण
यदि आपको बेवफा, मतलबी, भावनात्मक रूप से टॉर्चर करने वाले, विश्वासघाती किस्म के लोगों में दिलचस्पी होने लगे तो समझ जाइए कि आप डिस्ट्रक्टिव रिलेशनशिप पैटर्न में घिरे हुए हैं।
सकारात्मक सोच अपनाएं
कम से कम ऐसी छह बातों को पॉइंट करें जो आपके पिछले रिश्ते में मिसिंग थीं। ऐसी बातें जिनकी वजह से झगड़े होते थे। इन बातों को एक पेपर पर लिखें और साथ ही उन बातों का भी जिक्र करें जो आप चाहते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपकी लेखनी में भी नकारात्मकता न झलके। उन बातों के बारे में न लिखें जो आपके वर्तमान पार्टनर को करनी चाहिए। अपने ऊपर फोकस करें और ईमानदारी से आत्म मूल्यांकन करें।
ये छह चीजें लिखने के बाद-
1. एक-एक करके उन लिखी हुई बातों को पढ़ें। अब सोच कर देखिए कि ये बातें कहां से आ रही हैं। क्या ये आपके पिछले रिश्ते से संबंधित हैं या इनका आपके माता-पिता, बचपन या जीवन के किसी और पहलू से भी संबंध है। उस दर्द को महसूस कीजिए जो आपने झेला है और अगर आपका रोने का मन हो तो खुद को रोकिए नहीं। भावनाओं का गुबार निकलना भी जरूरी है। अपने घावों के लिए इससे अच्छा मरहम नहीं हो सकता। विचित्रा के अनुसार इस स्थिति को 'कथार्सिस' कहते हैं। वह कहती हैं, 'अगर आप चाहें तो ये बातें अपने किसी करीबी से भी शेयर कर सकते हैं जैसे दोस्त, दादा-दादी, आदि। हां, माता-पिता से ये बातें शेयर करने से बचें। देखा जाता है कि कुछ मामलों में माता-पिता बच्चे को ज्यादा नहीं समझ पाते। यह स्थिति कुछ वैसी ही है।'
2. सोचकर देखिए कि क्या आप अपने नए रिश्ते को दोबारा उसी ढर्रे पर तो नहीं ले जा रहे! उसी तरह की बहस, उसी तरह की उलझनें, उन्हीं मसलों पर अनबन जिन पर पहले हुआ करती थी, कहीं दोबारा आपके रिश्ते का हिस्सा तो नहीं बन रही।
3. एक बार सोच कर देखिए कि आप जो क्वॉलिटीज अपने पार्टनर में चाहते हैं, क्या आप उन्हें डिजर्व करते हैं? गौर कीजिए कि जो डिमांड्स आपने उस कागज में लिखी हैं, कहीं वो नाजायज तो नहीं?
इस आत्म मूल्यांकन सेशन में आप खुद ही समझ लेंगे कि आपको पिछले रिश्तों के जंजाल से निकलने की सख्त जरूरत है। ऐसी स्थिति में आपकी मदद कोई और नहीं, बल्कि आप खुद ही कर सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक डॉ. समीर पारेख के अनुसार इस स्थिति से बचाव सिर्फ सकारात्मक सोच के जरिये ही किया जा सकता है। वह कहते हैं, 'खुद को रिश्तों में जबरदस्ती बांधने से बचें। सिर्फ इसलिए कि आपको एक इमोशनल सहारा चाहिए या आपको ऐसे रिश्ते की आदत है, आप रिश्ते में खुद को बर्बाद न करें। अपने दायरे बढ़ाएं।'
विचित्रा कहती हैं, 'इस रिलेशनशिप पैटर्न से निकलकर इंसान की शख्सीयत में काफी बदलाव खुद-ब-खुद महसूस होता है। सबसे बड़ा बदलाव दिखता है कॉन्फिडेंस लेवल में। व्यक्ति एक बार फिर अपने दायरे बढ़ाना चाहता है और अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता है।'

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