Saturday 22 March 2014

इंतजार सही तकरार नही

शोखियों, शरारतों और शहनाइयों के इस मौसम में रूमानी गुलाबों का खिलना सभी देखते हैं, लेकिन फिलहाल तो आरती अरोड़ा को कांटों की तीखी चुभन महसूस हो रही है। वे अपनी छोटी मौसेरी बहन की शादी में बड़े मन से गई हुई थीं पर वहां रिश्ते की चाचियों-आंटियों ने अपना बेहद फेवरिट और आरती को उतना ही नापसंद 'हाय, तेरी उमर निकलती जा रही है' का टॉपिक छेड़ दिया। औरतों की इस बहस में आरती के ओहदे की तो जैसे कोई वैल्यू ही नहींथी और उनके बत्तीसों दांत केवल उसकी बत्तीस साल की उम्र के पीछे पड़े थे। पेशे से इन्वेस्टमेंट बैंकर आरती कहती हैं, ''मैं सुंदर हूं, सफल हूं, आत्मनिर्भर हूं लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता शादी नहीं, कॅरियर थी। अब मैं भी शादी करना चाहती हूं पर मुझे कोई कमिटेड और मैच्योर मेंटलिटी का मैच नहीं मिल रहा तो मैं क्या करूं? 'कुंवारी बैठी है' सरीखी टिप्पणियां सुनकर कभी-कभी तो इतनी खीझ होती है कि अपनी किसी विदेशी ब्रांच में ट्रांसफर लेने का मन करता है।''
..पर दिलचस्प बात यह है कि ऐसा केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में होता है। कुछ वक्त पहले एक ब्रिटिश समाचारपत्र में लेखिका हेलेन फील्डिंग का कॉलम बेहद लोकप्रिय था जिसमें वे तीस साल की उम्र पार कर चुकी एक अकेली महिला के अनुभव लिखती थीं। आज उस कॉलम को दुनिया बेस्टसेलर किताब ब्रिजेट जोन्स डॉयरी के नाम से जानती है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इन परिस्थितियों का सामना करने वाली आरती अकेली नहीं हैं, दुनिया भर में लाखों कामयाब लेकिन कुंवारी महिलाओं को इससे गुजरना पड़ता है। अपनी सहूलियत के लिए मनोवैज्ञानिकों ने इसे ब्रिजेट जोन्स सिंड्रोम का नाम दिया है। यह सिंड्रोम उन सफल और अकेली महिलाओं का पर्याय बन गया है जो कॅरियर के रूप में कामयाब जीवन का भरपूर आनंद ले रही है पर कहीं न कहीं 'मनमुताबिक मीत' की प्रतीक्षा भी कर रही है। उन्हें शादी का इंतजार तो है पर वे इसके लिए बेकरार नहीं हैं।
इस ग्लोबल ट्रेंड के 'इंडिया एडीशन' में ट्विस्ट यह है कि ब्रिजेट जोन्स सिंड्रोम अब केवल महिलाओं पर लागू न होकर पुरुषों पर भी समान रूप से प्रभावी हो गया है। भारत में तेजी से बढ़ती युवा आबादी में कॅरियर को लेकर इस कदर होड़ है कि शादी की औसत उम्र बढ़ती ही जा रही है। अब वे कम से कम मिडिल लेवल एग्जीक्यूटिव की श्रेणी में पहुंचने के बाद ही शादी करना चाहते हैं ताकि भावी परिवार को ठोस आर्थिक मजबूती भी दे सकें। जाहिर है कि 22 साल की आयु तक कोई प्रोफेशनल कोर्स पूरा करने के बाद इतनी तरक्की पाने में 30 की उम्र तो पार हो ही जाती है।
ऐसे युवा तीस पार होने का दबाव जरूर महसूस करते हैं लेकिन प्राथमिकताएं उन्हें शादी के मंडप में बैठने से रोकती हैं। एक विज्ञापन एजेंसी में क्रिएटिव हेड रजत सिन्हा 33 साल के हो चुके हैं और कुवांरे हैं। वे कहते हैं, ''प्यार अंधा होता है लेकिन शादी आंखें खोल देती है। आज की पीढ़ी पर पहले की तुलना में जो दबाव है उसे अभिभावक महसूस नहीं कर सकते। मेरे पिता ने सेवानिवृत्त होने के बाद कार खरीदी और मकान बनवाया लेकिन मेरे लिए इनका मालिक बनने की उम्र पहले आ गई थी। ईएमआई पर ही सही, दुनिया की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए यह मेरी जरूरत थीं और यकीनन इसके लिए शादी की जगह कॅरियर पर ध्यान देना पड़ा।'' रजत को शिकायत अपनी जिंदगी से नहीं, बल्कि लोगों की सोच से है, ''40 पार के सलमान खान और राहुल गांधी को आप परफेक्ट बैचलर कहते हैं और हमको अंकल! यह अंतर ही जताता है कि सोसायटी स्टैबलिश्ड लोगों को हर कंडीशन में इज्जात देती है और फिर मैं भी तो यही कोशिश कर रहा हूं।''
यह लॉजिक्स साफ करते हैं कि उम्रदराज संतानों के लिए सही साथी तलाशते अभिभावकों को भले ही पसीना छूटता हो, पर इनकी पेशानी पर बल नहीं है। बैचलर्स की इसी जमात में शामिल टेलीकॉम इंजीनियर उदय मिश्र कहते हैं, ''जरा भावी संतान के पालन-पोषण और पढ़ाई का खर्च ही जोड़ कर देखिए तो आपको मालूम पड़ जाएगा कि सेहरा बांधने से पहले कॅरियर में कामयाबी क्यों जरूरी है?'' वहींउम्र का तैतींसवां बसंत देख चुकीं इवेंट मैनेजर शिप्रा गोयल कहती हैं, ''पैसा तो मैं खुद कमाती हूं पर इंतजार है उसका जो मुझे सच्चा प्यार दे सके। यह इंतजार इसलिए भी जरूरी है क्योंकि शादी गुड्डे-गुड़ियों का खेल नहीं है। मैं जिस खूबी से इवेंट्स को मैनेज करती हूं, चाहती हूं कि मेरी जिंदगी का मैनेजर भी उतना ही मैच्योर हो। अधिकतर लोग सोचते हैं कि आत्मनिर्भर लड़कियां डॉमिनेंट होती हैं और मुझे ऐसा मिस्टर राइट चाहिए जिसमें यह रांग थिंकिंग न हो!''

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