Sunday 23 March 2014

'नेतागिरी' को पूरा भरोसा, चुनाव में देगी आशीर्वाद 'बाबागिरी'

'नेतागिरी' को पूरा भरोसा, चुनाव में देगी आशीर्वाद 'बाबागिरी'भोपाल। बीते दो दशक में धर्म, राजनीति के करीब आया है। पहले नेता मंदिर, मठ, अखाड़ों के महंत और आध्यात्मिक संतों से आशीर्वाद लेने पहुंचते थे, लेकिन अब वही संत किसी न किसी नेता का प्रचार करते दिखते हैं। धार्मिक प्रवचन के मंच से बाकायदा राजनीतिक संवाद हो रहा है। सीधे शब्दों में कहें, धर्म का राजनीति में और राजनीति की धर्म में अच्छी पैठ बन गई है। 90 के दशक में चारों पीठों के शंकराचार्य किसी न किसी एक राजनीतिक दल से सीधा संपर्क रखते थे। 
 
संतों की बात करें, तो योगगुरू बाबा रामदेव जी खुलकर बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को समर्थन दे रहे हैं। मोदी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उन्होंने देश भर के हिंदी राज्यों की यात्रा भी कर ली है। योग शिविर के साथ-साथ वे केंद्र सरकार की कमियां गिनाते हैं और विकल्प के रूप में मोदी को ज्यादा से ज्यादा वोट देने की अपील भी करते हैं। वहीं मुस्लिम धर्मगुरू भी एक वर्ग विशेष को किसी के पक्ष या विरुद्ध में वोट देने का फरमान सुनाते हैं। बिहार, यूपी का उदाहरण सामने है। 
 
एक ही सिक्के के दो पहलू - 
 
नेताओं का भी इनसे सीधा फायदा जुड़ा है। कोई नामी संत अगर 'आशीर्वाद' स्वरूप अपने हजारों-लाखों भक्तों और अनुयायियों को फरमान सुना दें कि इसे नहीं, इन्हें वोट देना है, तो नेताओं के वारे-न्यारे हो जाते हैं। यह कितना प्रभावी है, सब जानते हैं। कह सकते हैं कि मौजूदा समय में धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू बन गए हैं। ऐसे कई संत हैं, जिनसे नेताओं की और नेताओं की इनसे आस्था बंधी हुई हैं। जानिए, वह संतों में वे नाम कौन से हैं, जो राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करते हैं और अपनी 'बाबागिरी' से 'नेतागिरी' को फायदा पहुंचा सकते हैं-

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