Saturday 22 March 2014

दिल को देखो चेहरा न देखो

प्यार, इश्क, मोहब्बत.. रेशम के फाहों में लिपटा मन का कोमल-सा भाव, जो दिल में हौले से आकर जगा जाता है मीठा-अद्भुत अहसास, जो कभी मन को कुम्हला जाता है तो कभी अखंड विश्वास देता है। प्रिय के ख्यालों के आगोश में आते ही खुद को भुला देना, हर पल उनके सामीप्य की चाह। क्या व्यावहारिक जीवन में भी प्यार इसी का नाम है..
जिंदगी अनप्रिडिक्टेबल है। मैंने यह महसूस किया, जब मेरी जिंदगी में किसी ताजा हवा की झोंके की तरह आलोक ने कदम रखा। मैं बहुत घुटन और बोझ महसूस कर रही थी.. पर जब मेरे साथ इस बोझ को मिलकर उठाने के लिए आलोक सहर्ष साथ खड़े हुए तो उस दिन प्यार का असल अर्थ समझ में आया। अब मैं जान गई हूं कि प्यार का मतलब है- एक-दूसरे का सम्मान, ख्याल और भरोसा, बिना इस बात की परवाह किए कि साथी दिखता कैसा है!' यह कहना है लक्ष्मी का। उसी लड़की का, जिसकी कहानी हम सब ने सुनी है। वह तथाकथित 'आशिक' के तेजाबी हमले का शिकार बनी और उसकी पूरी दुनिया घर की चहारदीवारी में बंद हो गई। दरअसल, वह अपने बदरंग, जले हुए चेहरे को लेकर उस दुनिया का सामना नहीं करना चाहती थी, जहां सुंदर चेहरे पर फिदा होने वालों की बड़ी जमात है। लक्ष्मी कहती है- 'उस दर्दनाक हादसे के बाद से 'प्यार' शब्द से मेरा भरोसा उठ गया था। मैं दुनिया के सारे पुरुषों से नफरत करने लगी थी, पर नफरत के ये काले बादल धीरे-धीरे छंटने लगे, जब आलोक के सूरज से मेरी जिंदगी आलोकित होने लगी..।' यह कहानी आज की है, पर प्यार की ऐसी कहानियां सालों पहले से देखी-सुनी जा सकती हैं। इन्हें देखकर तमाम अंदेशों के बीच कहा जा सकता है कि जो प्यार को जीते हैं, उनके लिए शारीरिक सौंदर्य यानी चेहरे का कोई मोल नहीं। ऐसी ही एक जोड़ी है, भागलपुर बिहार के उषा और विवेकानंद की।
उषा बताती हैं- 'मैं आठ बहनों में सबसे बड़ी हूं। सुंदरता की जो परिभाषा दी जाती है, उस पर सभी बहनें फिट बैठती हैं। मेरी शादी एक ऐसे लड़के से हुई, जिसे मैंने पहले नहीं देखा था। फोटोग्राफ भी नहीं। मंडप पर जब देखा तो शादी की खुशी काफूर हो गई। मैं शोकाकुल थी। लड़का ऐसा था, जैसे किसी ने चेहरे पर कालिख मल दी हो। कहीं से भी सुंदरता की कसौटी पर नहीं टिका। बेमन से उन्हें स्वीकार किया। जहां भी जाती, सब उन्हें मेरा असिस्टेंट या यूं कहें कई बार नौकर तक बता देते। बहुत दिनों तक यह चलता रहा। किसी को यकीन नहीं होता कि वे मेरे पति हैं, लेकिन ये बातें आज कहानी बन चुकी हैं। जैसे-जैसे मैं उन्हें जानने लगी, मेरी धारणा बदलने लगी। उनके प्यार, उनके साथ ने प्यार का सही अर्थ समझाया। मैं इतने सालों तक जिंदगी में आने वाले हर उतार-चढ़ाव का सामना कर रही हूं तो इसके पीछे उनसे मिली ताकत है। उनके सांवले रंग की मुरीद हूं मैं, कह सकती हूं इस रंग में मैं खुद भी रंग गई हूं।'
दिल अनमोल है..
नच बलिए सीजन-6 में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके विनोद ठाकुर और उनकी पार्टनर श्रेया ठाकुर को कौन नहीं जानता। विनोद पैरों से सक्षम नहीं हैं, पर उनके अंदर हौसले की कमी नहीं है। वे इसी हौसले की बदौलत स्टेज पर थिरकते हैं। नच बलिए के मंच पर सबको कड़ी टक्कर दे चुके विनोद को पहली बार साल 2010 में रियलिटी शो 'इंडिया गॉट टैलेंट' में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला था। इसके बाद विनोद ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बिहार के बेगूसराय के रहने वाले और दिल्ली में पले-बढ़े विनोद जब दिल्ली में स्लम और गरीब तबके के बच्चों को डांस की ट्रेनिंग देने लगे, तभी उनकी मुलाकात रक्षा से हुई। रक्षा भी डांस में पारंगत हैं और उन्हें भी बच्चों को डांस सिखाने में मजा आता है। विनोद कहते हैं- 'रक्षा मेरे पैशन की कायल है और मैं उसकी लगन और कड़ी मेहनत करने के जज्बे का मुरीद हूं। उसका दिल बहुत साफ है एक बच्चे की तरह। उसका दिल जितना गहरा है, उतना ही सच्चा है। मैं उसकी बहुत इज्जत करता हूं। शायद इसीलिए हमारी ट्यूनिंग अच्छी है और हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं। विनोद आगे कहते हैं- 'हमारे बीच की अंडरस्टैंडिंग देखकर लोग हैरान होते हैं। शायद वे सोचते हैं- कहां मैं पैरों से समर्थ नहीं, कहां रक्षा इतनी खूबसूरत और सक्षम, क्या इनके बीच प्यार हो सकता है? पर हमें इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। हैरानी होती है, जब छोटी-छोटी बात पर हमारे बीच नोक-झोंक होती है तो कुछ लोग खुश हो जाते हैं.. पर किसी में इतनी ताकत नहीं जो हमारे बीच दरार डाल सके!' विनोद और रक्षा ने बिना अपने परिवार को बताए शादी कर ली। बाद में उनके जज्बे ने सबका दिल जीत लिया और वे दुनिया को बताने में कामयाब हुए कि दिल की दुनिया में झूठे दिखावे का मोल नहीं। जिसमें बस प्यार बसता है, वह दिल अनमोल है!
हमने सिर्फ समर्पण देखा
जम्मू की प्रतिष्ठित रंगकर्मी जोड़ी है गुरमीत और भूपिंदर जम्वाल की। नाटकों में भूपिंदर जम्वाल का निर्देशन कमाल का है, वहीं गुरमीत जब मंच पर उतरती हैं, तब देखने वाले दृश्य में गुम हो जाते हैं। गुरमीत कहती हैं- 'मैं सिख समुदाय से हूं और मेरे पति जम्मू के पारंपरिक राजपूत परिवार से। मेरे पापा कहते थे कि जिंदगी जिसकी हो, फैसला लेने का हक उसी को होना चाहिए, लेकिन इनके परिवार में ऐसा नहीं था।' भूपिंदर अपनी जिंदगी का फैसला नहीं ले सकते थे। परिवार थोड़ा सख्त था। गुरमीत से शादी के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा। तकरीबन सात साल..। हालांकि गुरमीत बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन उन्होंने एक-दूसरे की ईमानदारी और समर्पण को पसंद किया। उनके बीच 'लव एट फ‌र्स्ट साइट' जैसा कुछ नहीं था, जहां आमतौर पर पार्टनर की सुंदरता या पर्सनैलिटी देखी जाती है। यदि ऐसा होता तो भूपिंदर के लिए गुरमीत को सात साल का लंबा इंतजार शायद नहीं करना पड़ता और न ही भूपिंदर इतने साल परिवार को मनाने में लगा पाते। गुरमीत कहती हैं- 'मेरा मानना है कि आपको जिंदगी के सफर में सिर्फ चलना आना चाहिए, मंजिल मिल ही जाती है। इसलिए पहले दिन से लेकर आज तक हमारे बीच सब कुछ सकारात्मक ही हुआ है।'
प्रेम की दीपिका
दीपिका और डॉ. प्रेम सागर ने नेत्रहीनता के कारण भले ही एक-दूसरे को कभी नहीं देखा, लेकिन उनकी मन की आंखें व अनुभूतियां उन्हें प्रेम के बंधन में बांधे रखने के लिए काफी हैं। दीपिका नेत्रहीन लोगों के लिए टॉकिंग बुक्स बनाने का काम करती हैं और पंजाब में 'सक्षम' नामक संस्था की प्रमुख हैं। उनके पति डॉ. प्रेम सागर जालंधर के एचएमवी कॉलेज में संगीत के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इनकी मुलाकात दिल्ली में 'नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड' के कार्यालय में हुई, जहां दीपिका पहले से काम करती थीं। प्रेम सागर नेत्रहीनों के लिए वहां नई तकनीकों की जानकारी लेने जाते थे। उन्होंने एक-दूसरे का साथ उम्र भर निभाने की इसलिए ठानी, क्योंकि वे एक-दूसरे की शारीरिक कमी को महसूस कर सकते हैं। शुरू में पारिवारिक विरोध भी हुआ कि दोनों देख नहीं पाएंगे तो जीवन की गाड़ी कैसे चलेगी? लेकिन इनका प्यार जीता। पहली मुलाकात के सात साल बाद इनकी शादी हुई। इनके अनुसार, 'सफल रिश्ते के लिए एक जैसी मानसिकता का होना ज्यादा आवश्यक है। शारीरिक सौंदर्य तो कुछ समय के लिए होता है, लेकिन मन की सुंदरता स्थायी होती है।'
लुक पर न जाएं
अनुष्का शर्मा, अभिनेत्री
रिलेशनशिप की कामयाबी का सबसे बड़ा मंत्र है-दोनों पार्टनर के बीच अंडरस्टैंडिंग अच्छी हो और वे एक-दूसरे का सम्मान करें। जिस रूप में दोनों हैं, उन्हें स्वीकार करें। यह अपेक्षा करना व्यर्थ है कि पार्टनर सुंदर होना चाहिए। लुक पर न जाएं। देखें कि उसका दिल सच्चा है कि नहीं। इस संदर्भ में एक गाना बिल्कुल सटीक बैठता है- दिल को देखो, चेहरा न देखो..।
फास्डफूड नहीं है रिलेशनशिप
जावेद हबीब, हेयरस्टाइलिस्ट
मैं उस जेनरेशन से जुड़ा हूं, जो अपने कल्चर और तहजीब को मानता है, जो हमेशा भीतरी सुंदरता को अहमियत देता आया है। चेहरा देखने का मतलब हमारे लिए वही है, जैसे फास्ट फूड। जो बाहर से बेहद आकर्षक दिखता है, लेकिन खाने पर काफी नुकसान करता है। चटपटा है, उस क्षण बड़ा स्वाद भी होता है, लेकिन यदि वह रोजाना खाने में शामिल हो जाए, तो जहर बन जाता है। इसी तरह, यदि हम अपने रिश्ते में खूबसूरती को अहमियत दें, अपने पार्टनर के विचार, उनकी जरूरतों को न समझें तो यह संबंध को खोखला कर देगा।
दिल पर भारी चेहरा
विभा रानी, रंगकर्मी और लेखिका
लड़कों की सीरत और लड़कियों की सूरत अच्छी होनी चाहिए- यह बहुत पुरानी सोच है। मेरी चार बहनों में मैं सबसे खराब दिखती थी। घर के लोग मेरी सूरत का रोना रोते। मोहल्ले वाले भी कहते- जब सुंदर बहनों की शादी में दिक्कतें आई तो इसका क्या होगा? मैं दिमागी तौर पर परेशान थी, पर इसे पॉजिटिवली लिया। अंतत: जद्दोजहद खत्म हुई, मुझे एक ऐसा साथी मिला, जो चेहरे के बजाय मेरी सोच, मेरी काबिलियत की ओर आकर्षित हुआ।
खोखली सुंदरता हो भी तो क्या!
इलुश अहलूवालिया, पेंटर
मेरी बुआ और फूफाजी की कहानी मुझे प्रेरित करती है। बुआ बला की खूबसूरत थीं और फूफाजी इसके विपरीत थे, लेकिन मैंने देखा उन दोनों के बीच गजब की बॉन्डिंग थी। वे घर में मिसाल थे। हम नाहक खूबसूरती की ओर खिंचे चले जाते हैं। कई बार सिर्फ खूबसूरत लड़की या लड़का देखकर शादी का फैसला सही नहीं है। यह आम अनुभव है। अक्सर खूबसूरत चेहरे के पीछे एक बेहद कुरूप दिल बसा होता है।
इनपुट जम्मू से योगिता यादव, जालंधर से वंदना वालिया बाली और मुंबई से अमित कर्ण
सीमा झा

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