Saturday 22 March 2014

पैसा पहिया प्यार का


मां कहती थी 'रोटी कमाना' पति का और 'रोटी बनाना' पत्नी का मूल कर्तव्य है, पर बदल गयी तस्वीर। आज पत्नी ने घर से बाहर निकल अपने बूते पर परिवार के लिये लक्जरी गाड़ी जुटायी, पर इसकी कीमत भी चुकायी..। अब, हर महीने उसकी 'शादी' उसकी सैलरी का मुंह ताकती है और पत्नी अवाक सी देखती है कि 'पैसे से पति का मूड भी बदलता है..'

दांपत्य की चर्चा में अक्सर विश्वास, परस्पर समझ और सहयोग की बात होती है, पर क्या गृहस्थी की गाड़ी सिर्फ इससे खींची जा सकती है..। आर्थिक सक्षमता और सुदृढ़ता न सिर्फ जीवनस्तर, बल्कि प्रेम के स्तर में भी वृद्घि करती है।
यदि हम नैतिकता से ऊपर उठ व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखें तो यह सच है कि 'पैसा' प्यार को अभिव्यक्त करता है..।
'की' फैक्टर है पैसा
नासिक की सुप्रिया एक मल्टीनेशनल में लीगल एडवाइजर हैं, वह तपाक से कहती हैं 'अरे, 'पैसा'.. इसके बिना तो मैरिड लाइफ में मिठास की उम्मीद मत करिए, क्योंकि 'पैसा' आपकी बुनियादी जरूरतों को तो पूरा करता ही है। साथ में सुकून भी देता है और आप ज्यादा संतुष्टि के साथ अपना रिश्ता निभा पाते हैं'।
यह सच है कि रिसोर्स फुल पत्नी ज्यादा बेहतर तरीके से पति, परिवार और बच्चों के बारे में सोच सकती है। वह उन्मुक्त हो शादीशुदा जीवन जी पाती है, क्योंकि 'पैसे' ने उसकी छोटी-छोटी खींचतान, बजटिंग और मन मसोसकर जीने जैसी लाइफस्टाइल को समाप्त कर दिया है।
गुड़गांव की शारदा कहती हैं, 'पता ही नहीं चला कब शादी हो गयी। फिर बच्चे फिर उनकी शादी.. पूरी जिंदगी पति ने कमाया और मैंने उस कमाई का हिसाब लगा-लगाकर यूं खर्च किया कि सारे कोने भरे रहें..। बस घूमती रही मेरी शादी 'पैसे के चारों ओर'.. यही कहानी है हर आम महिला की।
ग्लैमरस होता दांपत्य
यूरोपियन हॉलीडे पैकेज हो, इटैलियन रेस्त्रां का कैंडिल लाइट डिनर या गिफ्ट में डायमंड्स से कम कुछ नहीं की सोच..। क्या यह सच नहीं कि आंखों से व्यक्त होने वाला रिश्ता, जेब की गर्मी से और ज्यादा निखरता है।
पहले की शादी में, पास बैठना और टाइम देना या ज्यादा हुआ तो नुक्कड़ तक जाकर गोलगप्पे खाकर लौट आना काफी था, पर अब.. नई कॉस्मेटिक रेज, ब्यूटी सैलून की रेग्यूलर विजिट और गैजेट्स का अपडेशन दांपत्य की खाद बन गया है। शादी हरी-भरी रखनी है तो 'पैसा' चाहिए।
पॉलिटिकल एनालिस्ट रजत कहते हैं, 'आज की शादी में पति 'प्रोडक्ट' है, जिसमें जितने ज्यादा अपीलिंग फैक्टर होंगे.. पत्नी उतनी ही ज्यादा हमारी इमोशनल वैल्यू आंकेगी..।
बदल जाता है चश्मा
गुवाहाटी की फैशन कोऑर्डिनेटर शोनाली मजूमदार कहती हैं, 'मंदी की मार ने मेरे प्रोफेशन पर बुरा असर डाला और काम कम हो गया, पैसा भी नहीं आया। ज्यादा तकलीफ तो तब हुई जब पति और ससुराल के अन्य लोगों की नजर में मैं 'बेकार' हो गयी..। लगातार ताने, मेरी योग्यता पर कटाक्ष, कारण सिर्फ एक था कि 'पैसे' नहीं आ रहे।'
यह सच है कि पैकेज बढ़ने के साथ अपने जीवनसाथी की नजरों में एकाएक बढ़ती इज्जात यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि 'क्या पति या पत्नी एक-दूसरे की कीमत एक 'एंप्लायर' की तरह ही आंकते हैं..।'
शादी की किस्तें
एक पब्लिशिंग हाउस की संपादक मनीषा कहती हैं 'ईश्वर ने सब कुछ दिया.. नाम, पैसा, दूर से दिखती स्टेबल पर्सनल लाइफ.., पर आहत हूं कि आज तक 'शादी' की कीमत चुका रही हूं। दवाई से लेकर फ्लैट और गाड़ी की किस्तें तक खुद देती हूं। जब से शादी हुई है सिर्फ एक ही काम किया है 'पैसा कमाना' और मेरे पति ने भी एक ही काम किया है 'कैसे ज्यादा कमाऊं' इस पर सलाह देना.. क्या यही है शादी..।'
यह केवल मनीषा नहीं, बल्कि बहुत सी कामकाजी महिलाओं की जुबां है। शादी होती है तो पति समझता है मानो दूध देने वाली गाय खरीदी है, जो दूध भी देगी और लात भी नहीं मारेगी, क्योंकि वो एक 'गाय' है..।
घरेलू महिला:
हम ज्यादा खुश हैं
इलाहाबाद की उर्मिला कहती हैं, '44 सालों की मैरिड लाइफ में हमें कभी पैसे को लेकर दिक्कत नहीं हुई। हमने अपनी जरूरतें पति को बताईं और पति ने उसके अनुसार पैसे दे दिए.. पति को भी पूरा भरोसा था कि मैं उनकी कमाई का सार्थक उपयोग करूंगी..। हां, ये जरूर है कि मेरी इंजीनियर बेटी जिस आजादी से खरीददारी का निर्णय लेती है, मैं नहीं ले पाई, पर मैंने एक खुशहाल जीवन जिया है।'
सही कहती हैं उर्मिला, घरेलू महिलाएं जिन्हें आर्थिक जरूरतों को सीमित रखना आता है, वे ज्यादा खुश रहती हैं.. न कमाने का दबाव, न कुंठा। बस, पति की आर्थिक क्षमता के अनुसार इच्छाओं को बढ़ाना और घटाना आना चाहिए।
पैसा: गांरटी नहीं सफल शादी की
शादी में पैसे की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, पर ऐसा नहीं है कि आपसी लगाव, प्रेम और वैवाहिक संतुष्टि को पैसा रिप्लेस कर सकता है..। पैसे के ढेर पर बैठने वाली पत्नी भी कभी-कभी यह कह उठती है कि कुछ नहीं चाहिए न पैसा, न लक्जरी। बस एक आम परिवार हो जो हर छोटी-बड़ी बात पर बिना शर्त साथ निभाए, जहां पति समझ सके कि पत्नी की वास्तविक जरूरत क्या है।
करना चाहिए पत्नी को सहयोग
अगर हर सुख-दुख, पति-पत्नी में बराबर बंटना चाहिए तो आर्थिक जिम्मेदारी क्यों नहीं। क्या कर सकती है पत्नी..
- अपनी योग्यता, क्षमता का भरपूर फायदा उठाएं और आर्थिक स्थिति मजबूत करे।
- अपने खर्चे सीमित करे।
- सिर्फ दिखावे के लिये पति पर अनावश्यक आर्थिक बोझ न डालें।
- बजट बनाएं और पिछले खर्च के एमाउंट को कम करने का तरीका सोचें।
- अगर आप भी कमाती हैं तो परस्पर बातचीत से किसी एक की अर्निग को पूरा सेव करने का प्लान करे।
- अपने रिश्तेदारों और फिजूलखर्च मित्रों की देखा-देखी न करे।
- पति की आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष न करे।
- बैंकिंग में एक्सपर्ट बनें ताकि लेन-देन आप स्वयं कर सकें।
- सेविंग को 'कॉमन गोल' बनाएं।
- मेहनतकश पति को सराहें, क्योंकि पति भी आपको खुश करने की कोशिश में लगे रहते हैं।
- मैं पहले सिर्फ ब्रांडेड और लेबल्ड कपड़े ही पहनती थी.., पर अब तो.. इस तरह की बातें न करे।
- पति की सोशल इमेज अच्छी बनाएं और बेहतर जीवनस्तर मेंटेन करे।
- आर्थिक स्थिति का असर अपने स्वभाव और व्यक्तित्व पर न पड़ने दें।
कमाऊ लड़की: क्या दहेज का विकल्प है
आजकल मैट्रीमोनियल प्रोफाइल में पहली मांग 'अर्निग लड़की' की ही होती है। मानो बेटे की शादी न हो, बल्कि उसकी सैलरी बढ़ा रहे हों..।
पिछले दो दशकों में 'वर्किग ग‌र्ल्स' की डिमांड बढ़ी तो अब 'वर्किग' लड़की पहली शर्त हो गई है बेटे की शादी के लिये..। कारण और तर्क कितने भी हों, पर सबसे बड़ा तर्क यही है कि आज की महंगी जिंदगी में अच्छा होगा यदि दोनों कमाएंगे, पर माता-पिता यह भूल जाते हैं कि जब दोनो कमाएंगे तो उनकी डिमांड भी बराबर ही होगी। ऐसे में एडजस्टमेंट की अपेक्षा सिर्फ बहू से करना बेमानी होगा।
- पत्नी/बहू पर कमाई का दबाव न डालें।
- 'हमने शादी तुम्हारी जॉब देखकर की थी' इस तरह के कमेंट न करें।
ये कुछ ऐसी बातें हैं, जो अक्सर 'पत्नी की कमाई' पर फोकस्ड पति के मुंह से निकल ही जाती हैं। ध्यान रखिए अगर आपके लिए पत्नी 'ब्लैंक चेक' है तो फिर उससे सम्मानीय और सामान्य दांपत्य की उम्मीद करना ज्यादा है।
पैसा मेरा ताला तेरा
पति-पत्नी में पैसे को लेकर अक्सर खींचतान यहीं से शुरू होती है, जब जी तोड़ मेहनत कर कमाए पैसे का मैनेजर दूसरा बन बैठता है। इतना क्यों, किसको देना है, पिछले महीने तो दिए थे मां को पांच हजार..। इस तरह की बातें दूसरे साथी को आर्थिक दुराव-छिपाव करने पर मजबूर कर देती हैं.. समझना चाहिए पति-पत्नी को।
- जब पत्नी या पति पैसा कमा सकते हैं तो संभाल भी सकते हैं..। अत: अनावश्यक प्रबंधन न करे।
- एक-दूसरे को खर्च का एजेंडा न दें कि तुमने ये कहां खर्च किया।
- एक-दूसरे की जिम्मेदारियों को समझकर सहयोग दें।
इसमें विरोधाभास है, अक्सर पति तो पत्नी की अर्निग का हिसाब रखते हैं, पर स्वयं देने से कतराते हैं..। यदि कमाई की अपेक्षा है तो खर्च की स्वतंत्रता देनी ही होगी।

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